फलादेश में सबसे अधिक महत्त्व “भाव-भावेश-कारक” का होता है। इन तीनों की तुलनात्मक समीक्षा के बाद ही कोई निर्णय लिया जाना चाहिये।
भाव
कुण्डली के १२ घरों या खानों को “भाव” कहते हैं। यह बारह भाव हमारे जीवन और संसार की कारकों वस्तुओं को विभिन्न स्तरों पर बारह भागों में विभक्त करते हैं। जो ज्योतिषी इन कारक वस्तुओं को जितना अधिक जानता है, उतना अधिक सफल होता है। आगे समय मिलने पर इसी पृष्ठ पर भावों के प्रमुख-प्रमुख कारक लिखे जाएंगे, राशियों की तरह भाव भी संख्या में 12 हैं, लेकिन यह भिन्न होते हैं। राशियां और भाव 30-30 अंश के होने के पश्चात भी एक दूसरे से छोटे बड़े होते हैं। लग्न-भेद (स्थान-भेद) से ये छोटे-बड़े हो जाते हैं। भावों के छोटे-बड़े होने के कारण दशम-भाव-स्पष्ट (लग्न से 10वीं राशि का मध्य) कई बार नवम या एकादश भाव में पड़ जाता है।और, चलित में कई बार ग्रह एक नहीं दो भाव आगे-पीछे हो जाते हैं।
भावों को अन्य बहुत-से नामों से भी पुकारते हैं।
1. लग्न, विलग्न, होरा, कल्प, उदय, तनु, जन्म, प्रथम
2. धन, कुटुम्ब, अर्थ, संपत्ति, भुक्ति, वाक्, द्वितीय
3. पराक्रम, सहोदर, वीर्य, सहज, धैर्य, तृतीय
4. सुख, मातृ, बन्धु, पाताल, वृद्धि, चतुर्थ
5. सुत, देव, बुद्धि, विद्या, संतान, पंचम
6. रिपु, रोग, भय, क्षत, ऋण, षष्ठ
7. जाया, जामित्र, काम, सप्तम
8. रन्ध्र, मृत्यु, आयु, अष्टम
9. धर्म, भाग्य, शुभ, नवम
10. कर्म, मान, पद, दशम
11. आय, लाभ, एकादश
12. व्यय, द्वादश
भावेश :- भाव विशेष में स्थित राशि का स्वामी ग्रह ही उस भाव का स्वामी होता है, जिसे भावेश कहते हैं।
1. प्रथम भाव के स्वामी को लग्नेश;
2. द्वितीय भाव के स्वामी को धनेश/द्वितीयेश;
3. तृतीय भाव के स्वामी को सहजेश/तृतीयेश;
4. चतुर्थ भाव के स्वामी को सुखेश/चतुर्थेश;
5. पंचम भाव के स्वामी को सुतेश/पंचमेश;
6. षष्ठ भाव के स्वामी को रोगेश/षष्ठेश;
7. सप्तम भाव के स्वामी को जायेश/सप्तमेश;
8. अष्टम भाव के स्वामी को रन्ध्रेश/अष्टमेश;
9. नवम भाव के स्वामी को भाग्येश/नवमेश;
10. दशम भाव के स्वामी को कर्मेश/दशमेश;
11. एकादश भाव के स्वामी को आयेश/एकादशेश;
12. द्वादश भाव के स्वामी को व्ययेश/द्वादशेश; कहते हैं।