05, Jul 2022

ज्योतिष में अष्टकवर्ग का महत्व

फलित ज्योतिष में कुंडली के अनुसार फलादेश वर्तमान में ग्रहों की गोचरीय स्थिति का आंकलन के ही फलादेश दिया जाता है लेकिन गोचर पर आधारित फलकथन तब तक अधूरा है जब तक अष्टकवर्ग के द्वारा राशि विशेष में ग्रह के सापेक्षिक बलाबल के बारे में न जाना जाये , क्योंकि फलकथन के लिय अष्टकवर्ग एवं गोचर परस्पर एक दुसरे से सम्बन्धित है I ज्योतिष ग्रंथो में हमारे आदरणीय महाऋषि पराशर जी ने ज्योतिषशास्त्र के दो भेद बताएं है सामान्य और विशेष I सामान्य ज्योतिषशास्त्र  में कुण्डली , वर्ग कुण्डली व दशाफल इत्यादि को सम्मिलित किया गया है तथा विशेष ज्योतिषशास्त्र  में अष्टकवर्ग को सम्मिलित किया गया है I अष्टकवर्ग में सूर्यादि सात ग्रहों और लग्न के बल के पारस्परिक सम्बन्धों एवं प्रभावों के आधार पर स्टिक फलादेश दिया जाता है I अष्टकवर्ग के अर्थ जैसे नाम से ही स्पष्ट है की आठ वर्गों का समूह तथा यह आठ वर्ग सूर्यादि सात ग्रह व लग्न को मिलाकर अष्टकवर्ग बनते है I इसमें ग्रह विशेष के गोचर की शुभता अशुभता , आयुनिर्णय  , महूर्त में ग्रह व राशि की शुभता अशुभता व वर्तमान में भाव फल निर्णय इत्यादि का अध्ययन कर फलादेश दिया जाता है I अष्टकवर्ग पद्यति के सिधांत के अनुसार उस विशेष अवधि को ज्ञात किया जा सकता है , जिसमें कोई ग्रह एक राशि में गोचर करते समय शुभ या अशुभ कैसा फल देगा I अष्टकवर्ग में प्रथम सुर्याष्टक वर्ग से पितृकष्ट , स्वयं के लिए शारीरिक कष्ट , प्रभाव , शक्ति , यश इत्यादि के वारे में ,द्वितीय चन्द्राष्टक वर्ग से मन , माता को कष्ट इत्यादि ,तृतीय मंगलाष्टक वर्ग से पराक्रम, बल , धैर्य , भाई , अचल सम्पति , विवाद इत्यादि , बुधाष्टक वर्ग से रोजगार , आजीविका , धन , बुद्धी , परिवार ,मित्र इत्यादि , गुर्वष्टक वर्ग से पुत्र , धन , कीर्ति, प्रतिष्ठा , वाहन , धर्म , सम्पति , वस्त्र इत्यादि , शुक्राष्टक वर्ग से पत्नी , सौन्दर्य , विवाह , संतानोत्पत्ति , वैभव इत्यादि , शन्यष्टक से आयु, शोक , मुसीवत , शत्रु आजीविका का साधन , अधिपत्य इत्यादि का अध्ययन कर कुंडली का फलादेश दिया जा सकता है I

अष्टकवर्ग पद्धति के जन्मदाता भगवान शिव जी माने जाते हैं I भगवान शिव जी ने इसे माँ पार्वती के समक्ष उद्घाटित किया था , तदोपरांत महाऋषि पराशर जी से मनितथ नामक आचार्य जी ने इस विद्या को ग्रहण कर इसका प्रचार प्रसार किया था I अष्टकवर्ग पद्धति का वर्णन सर्वप्रथम नारद पुराण में भी मिलता है , नारद पुराण के प्रथम पाद में सप्तग्रहों के अष्टक वर्ग बनाने की बिधि का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है I वृहतपराशर होराशास्त्र प्रथम ऐसा ग्रन्थ है , जिसमें अष्टकवर्ग की सम्पूर्ण पद्धति का विस्तारपूर्वक उल्लेख दिया गया है I इसमें भिन्नाष्टक वर्ग , समुदायाष्टक वर्ग के साथ साथ तीन प्रकार के शोधन , अष्टकवर्ग फलादेश से आयुनिर्णय का समावेश किया गया है I इसलिए महाऋषि पराशर जी को अष्टकवर्ग का प्रणेता माना जाता है I पराशर जी के उपरांत वराहमिहिर ने भी अपने ग्रन्थ में अष्टकवर्ग पद्धति को विशेष स्थान दिया है, दक्षिण भारत में भी अष्टकवर्ग का प्रचलन है I 13वीं शताब्दी के ग्रन्थ मन्त्रेश्वर कृत फलदीपिका में भी अष्टकवर्ग का उल्लेख मिलता है I मध्यकाल के प्राचीन आचार्यों के मतों व बलभद्र रचित प्रसिद्ध ग्रन्थ होरारत्नम में इस पद्यति को स्पष्ट रूप से फलित ज्योतिष हेतु दर्शाया गया है साथ ही वर्तमान समय के श्री वी.वी. रमन जी , डॉ नारायण दत्त श्रीमाली जी , आचार्य श्री राव जी इत्यादि विद्वानों ने इस ज्योतिष में विद्या को पल्लवित एवं पोषित किया है I महाऋषि जी की मान्यता है की मनुष्य की आयु का ज्ञान और जीवन में आने वाले सुख –दुःख का ज्ञान ही ज्योतिष का मुख्य प्रयोजन है अत: अष्टकवर्ग के अनुसार कुंडली में ग्रह चाहे अपने भाव / घर में उच्च में हों या केन्द्र बल में हों या अन्य किसी प्रकार का बल हो , यदि वह ग्रह ऐसी राशि में जाता है , जिसमें उसे शुभ रेखायें कम प्राप्त हैं तो ऐसा ग्रह अनिष्ट अर्थात अशुभ फल ही देगा इसके विपरीत चाहे ग्रह कुंडली में नीच राशिगत , शत्रु क्षेत्री हो , या शत्रु के वर्ग में हो किन्तु अष्टकवर्ग में अधिक शुभ रेखाओं से युत राशि में स्थित हो तो शुभ फलों की ही प्राप्ति होगी अत: अष्टकवर्ग की पद्यति व सिधान्तों के अनुसार एक ही प्रकार के ग्रह भिन्न भिन्न जातकों भिन्न भिन्न प्रकार के फल प्रदान करते है या ऐसा भी कहा जाये की एक ही समय में उत्त्पन जातकों के कुंडली में सम्मान ग्रह होने से भी एक जैसा फलादेश नहीं होता है I होराशास्त्र के फलादेश जन्म समय पर आधारित होते हैं , यदि जन्म समय में कुछ अंतर हो जाये तो फलादेशों में भी काफी अंतर आ जाता है , जन्म समय को भी लेकर मतभेद है , जन्म समय किसे गिना जाये , बालक जब गर्भ से बाहर आता है या माता से जब नाल छेदन कर माता से पृथक किया जाये , तो ऐसे में कुछ विद्वान गर्भ कुंडली को विरयता देता हैं , आज जब समय को लेकर विवाद है और शुद्ध समय मिलना  प्रतीत होता है तो अष्टकवर्ग पद्यति ऐसे में सबसे उपयोगी सिद्ध होती है , फलादेश में अष्टकवर्ग की पद्यति का महत्व निर्विवाद है , अष्टकवर्ग के ज्ञान के बिना मनुष्य के जीवन के उतार चढ़ाव आदि अवस्थाओं या विशोंतरी आदि दशाओं का सटीक फल नहीं जाना जा सकता है I अष्टकवर्ग पद्यति से आयुनिर्णय , अरिष्ट विचार , विशोंतरी दशाओं की शुभता अशुभता की जानकारी प्राप्त की जा सकती हैसाथ ही मेदनीय ज्योतिष में भी अष्टकवर्ग पद्यति को प्रयोग में लाया जाता है I

*अन्त में यही कह सकते हैं की अष्टकवर्ग पद्यति हमारे भारतीय ज्योतिष की एक अनमोल विरासत है, इस पद्यति का उपयोग होराशास्त्र को निश्चयात्मक ज्योतिषशास्त्र बनाने के लिए करना चाहिये* I यही कारण है की पराशर आदि प्राचीन विद्वानों, आचार्यों ने अपने ग्रंथो में अष्टकवर्ग पद्यति का विस्तारपूर्वक वर्णन किया है और अभी भी अष्टकवर्ग पद्यति में शोध की अपार सम्भावनायें हैं I