27, Apr 2022

शनि के जन्म की कथा


पौराणिक कथा के अनुसार सूर्य देव का विवाह रजा दक्ष की पुत्री संध्या के साथ सम्पन्न हुआ था । सूर्य देव और संध्या के तीन पुत्र हुए थे जिनका नाम था वैवस्वत मनु, यमराज और यमुना । राजा दक्ष की पुत्री सूर्य के प्रचंड तेज को सहन करने कर पाने में असमर्थ थी । अपनी इसी परेशानी से पीछा छुड़ाने के लिए संध्या ने अपने तेज को बढ़ाने का निश्चय किया ।

संध्या ने सूर्य देव के तेज को कम करने के लिए कठोर तपस्या करना शुरू कर  दिया और कुछ ही वर्षों के बाद अपनी तपस्या के बल से अपने ही जैसी दिखने वाली एक छाया को उत्पन्न किया जिसका नाम सुवर्णा रखा । इसके बाद संध्या ने अपने जैसी दिखने वाली छाया जिसका नाम सुवर्णा था को सूर्य देव और अपने तीनों बच्चों की जिम्मेदारी सौंप दी और स्वयं तप करने के लिए महल से पिता के घर के लिए प्रस्थान । किया जाते समय संध्या ने स्वर्णा से इस राज को राज ही रहने की आज्ञा दी ।

जब संध्या ने पिता को अपनी परेशानी बताई तो पिता ने संध्या को डांटकर वापिस भेज दिया । परन्तु संध्या सूर्य देव के पास वापिस न जाकर वन में चली गई । उन्होंने एक घोड़ी का रूप धारण कर कठोर तपस्या आरम्भ कर  दी । उधर छाया अपने धर्म का पालन करती रही और छाया रूप में होने के कारण उन्हें सूर्य देव के तेज को सहन करने में कोई परेशानी नहीं होई । सूर्य देव को तनिक भी आभास नहीं हुआ की उनके साथ रहने वाली संध्या नहीं बल्कि छाया है । सूर्य देव और छाया के मिलन से तीन संतानों का जन्म हुआ जिनका नाम मनु, शनिदेव और भद्रा रखा ।

छाया भगवान् शिव की भक्त थी । एक समय जब वह भगवान शिव की तपस्या कर रही थी तभी सूर्य देव के तेज के कारण उनकी कोख में स्थित शनि देव का रंग काला हो गया और जब उनका जन्म हुआ तो वह काले रंग के हुए ।
सूर्य देव ने शनि को देखकर सोचा की मेरे पुत्र का रंग इतना काला नहीं हो सकता और वे बहुत क्रोधित हो गए | तभी शनि ने अपनी दृष्टि सूर्य पर डाली जिससे सूर्य देव भी काले पड़ गए । इसपर सूर्य देव ने भगवान शिव की तपस्या की जिससे उनका रंग पहले की तरह हो गया ।

भगवान शिव ने जब सूर्य देव को पूरी बात बताई तो सूर्य देवता शनि के प्रति खुश हुए । शनि देवता बचपन से ही भगवान शिव की भक्ति करने लगे जिससे खुश होकर भगवान शिव ने उन्हें एक वरदान मांगने को कहा । इसपर शनि देव ने भगवान शिव से कहा की सूर्य देव ने मेरी माता संध्या का घोर अपमान किया है । सूर्य देव ने मरी माता को प्रताड़ित किया है और सूर्य देव के इस व्यवहार के कारण मेरी माता संध्या हमेशा अपमानित और परित्यक्त होती रही है । शनि देव ने भगवान शिव से वरदान माँगा की आप मुझे मेरे पिता से ज्यादा और अधिक पूज्य होने का वरदान दें ।

इसपर भगवान शिव ने वरदान दिया कि सभी ग्रहों में तुम सर्वश्रेष्ठ बनोगे और तुम इस संसार में सबसे बड़े न्यायाधीश और दंडाधिकारी बनोगे । कोई साधारण इंसान तो क्या कोई भी देव, असुर,गन्धर्व और नाग सभी आपके नाम से भयभीत होंगे।

अब शनि देव पर पपृथ्वी पर लोगों द्वारा किये गये कर्मों के अनुसार फल देने की जिम्मेदारी है।

एक बार लंकाधिपति  रावण ने अपने शक्ति के बल से समस्त देवताओं के अधिकार छीन लिए और सभी नौ ग्रहों को कैद कर लिया । उस समय मेघनाद का जनम होने वाला था इसलिए रावण से सभी नौ ग्रहों को अपनी अपनी उच्च राशि में स्थापित होने का आदेश दिया जिससे कि मेघनाद अपराजेय और दीर्घायुवान हो जाये । परन्तु मेघनाद के जन्म से समय शनि ने अपनी स्थिति थोड़ी सी बदल दी और मेघनाथ अपराजेय और दीर्घायुवान नहीं हो सका। शनि देव के इस दुस्साहस के लिए रावण को उन पर बहुत गुस्सा आया और रावण ने क्रोध में आकर शनिदेव के पैर पर अपनी गदा से प्रहार कर दिया। इस कारण से शनि देव के एक पैर में हमेशा के लिए लचक आ गई।