08, Jul 2022

विवाह बाधा और उपाय

विवाह ज्योतिष के अनुसार, सप्तम भाव के स्वामी या सातवें भाव में बैठे या उसको देख रहे ग्रहों की दशा-अन्तर्दशा में विवाह होने की संभावना होती है। यह अलग बात है कि किसी जातक की कुंडली में यदि उसके जीवन काल में सातवें भाव व उससे सम्बंधित ग्रहों की दशा ही न चले तो व्यक्ति अविवाहित रह सकता है। उदाहरण के तौर पर, विश्व प्रसिद्ध गायिका श्रीमती लता मंगेशकर जी की कुंडली में विवाह योग्य दशा के अभाव में उनका विवाह नहीं हो पाया था। ज्योतिष में यदि सातवें भाव या लग्न पर शनि और गुरु दोनों का गोचर हो या दृष्टि पड़े तो विवाह के प्रबल योग बनते हैं। शुक्र व गुरु की महादशा-अंतर्दशा में भी विवाह होने के संकेत मिलते हैं। लग्नेश व सप्तमेश के राशि, अंश व कला को जोड़िये। अब जोड़ने पर जो राशि अंश व कला आएं, उस पर जब गुरु का गोचर होगा तो विवाह होगा। लग्नेश जब सप्तम भावस्थ राशि पर गोचर करेगा तब भी विवाह के प्रबल योग बनेंगे।  सप्तमेश का सप्तम भाव को गोचर में दृष्ट करना या स्वयं वहाँ बैठना भी विवाह करवा सकता है। पर हर स्थिति में देश, काल, पात्र की महत्वता है। अर्थात विवाह योग्य आयु और परिस्थितियों का होना भी अत्यंत आवश्यक है।

ज्योतिष के अनुसार, कुंडली का सातवां भाव आपके जीवन साथी का भाव होता है।  आपके विवाह से जुडी प्रत्येक जानकारी सातवें भाव के गहन अध्ययन से पायी जा सकती है। यदि कुंडली का सातवां भाव पाप प्रभाव यानी अशुभ ग्रहों जैसे सूर्य, मंगल , शनि, राहु व केतु के प्रभाव में हो तो व्यक्ति को विवाह में देरी और अगर विवाह हो भी जाये तो वैवाहिक जीवन में परेशानियों का सामना करना पड़ता है। पर केवल अशुभ ग्रहों के सातवें भाव में बैठ जाने से विवाह में देरी हो यह ज़रूरी नहीं, एक अनुभवी ज्योतिषी को उनकी राशियों व वे कुंडली में किन भावों के स्वामी बनते है आदि का भी ध्यान रखना होता है। ऐसा माना गया है कि यदि सातवें भाव का स्वामी त्रिक भावों या उनके स्वामियों से सम्बन्ध बनाएं तब भी जातक के विवाह में अनावश्यक देरी व बाधाओं का सामना करना पड़ता है।  गुरु ग्रह को विवाह का करक ग्रह माना गया है व कुंडली में गुरु की स्थिति वैवाहिक सुख का निर्धारण करती है।  यदि गुरु नीच, कमज़ोर , शत्रु राशि, पाप कर्त्री या अशुभ ग्रहों से ग्रस्त हो तो विवाह में देरी व अन्य बाधाएं आती है।  एक सुखी वैवाहिक जीवन के लिए कुंडली में गुरु का मज़बूत स्थिति में होना आवश्यक है। गुरु ग्रह एक स्त्री के लिए उसके पति को भी दर्शाता है। कुंडली में शुक्र ग्रह एक पुरुष के लिए उसकी पत्नी का कारक है और यदि उसकी कुंडली में शुक्र ग्रह पीड़ित है तो पत्नी मिलने में विलम्ब झेलना पड़ सकता है। अतः शुक्र का शुभ प्रभाव में होना एक सुखी वैवाहिक जीवन के लिए अनिवार्य है। यदि मंगल कुंडली के पहले, चौथे, सातवे या आठवें भाव में स्थित हो तो जातक मांगलिक दोष से पीड़ित हॉट्स है और यह दोष उसके विवाह में अनावश्यक विलम्ब करवाता है। शनि का अत्याधिक मजबूत होना भी विवाह ज्योतिष के अनुसार, विवाह के लिए अच्छा नहीं, वैसे तो मजबूत ग्रह अच्छा फल देते है पर यदि कुंडली में शनि उच्च का हो तो व्यक्ति का मन अध्यात्म में अत्याधिक लगता है और वह कड़ी मेहनत करने में ही अपना जीवन व्यतीत कर देता है। शनि आपको धुन का पक्का बनता है और ऐसे व्यक्ति के जीवन में हमेशा कोई न कोई लक्ष्य होता है जिसे पाने के लिए वह सब कुछ पीछे छोड़ देता है और यहां तक की विवाह को भी महत्व नहीं देता। सातवें भाव में बुध व शुक्र की स्थिति व्यक्ति को अत्यंत कामी बना देती है और वह वैवाहिक बंधन में या तो बांधना ही नहीं चाहता और यदि बंध भी जाए तो विवाह पूर्व सम्बन्ध भी बना सकता है। ऐसा व्यक्ति जल्दी से शादी के लिए हाँ नहीं कहता क्योंकि उसे कोई भी वैवाहिक प्रस्ताव जल्दी से अच्छा नहीं लगता या उसे कोई न कोई कमी लगती रहती है। वह स्वयं ही अपने विवाह में विलम्ब का कारण बनता है।  लग्न या सातवें भाव में सूर्य की स्थिति भी विवाह के लिए वांछित स्थिति नहीं है। केवल लग्न कुंडली नहीं यदि नवमांश कुंडली भी सातवें भाव पर अशुभ प्रभाव दर्शाती है तो यह निश्चित हो जाता है की जातक को विवाह में देरी या अन्य कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। कभी–कभी किसी जातक की कुंडली में एक से अधिक विवाह का संयोग होता है जो वैवाहिक जीवन के कष्टपूर्ण रहने की ओर इशारा  करता है।

अतः बहुत से ऐसे ज्योतिषीय योग है जो विवाह में आ रही बाधाओं को इंगित करते हैं। एक अनुभवी ज्योतिषी कुंडली में बन रहे इन योगों के आधार पर विलम्ब का कारण बता सकता है और साथ ही साथ इस बाधाओं से मुक्त होने के रास्ते भी सुझा सकता है।  कुछ ऐसे ज्योतिषीय उपाय है जो विवाह में हो रही देरी या अन्य बाधाओं को दूर करने में अत्यंत प्रभावी सिद्ध हुए है। आइयें जानें उनके बारे में –  

जिन कन्याओं का विवाह सम्बन्ध नहीं बैठ पा रहा हो या फिर बार-बार रिश्ता छूट जाता हो, उन्हें गुरु की कृपा प्राप्त करने के लिए बृहस्पतिवार के दिन व्रत पीले वस्त्र पहन कर, पीले पुष्प व पीले मिष्ठान से भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। इसके साथ ही केले के पेड़ की जड़ में शुद्ध घी का दीपक जलाना चाहिए और केले की जड़ में जल देना चाहिए, इस दिन केले खाना निषेध है। बृहस्पतिवार के दिन व्रत भी रखा जा सकता है जिसमे बिना नमक का पीला भोजन ग्रहण करना चाहिए।विवाह न हो पा रहा हो तो हर गुरुवार नहाने के पानी में चुटकी भर हल्दी मिलाकर स्नान करना चाहिए और केसर या हल्दी का तिलक लगाना चाहिए। इसके अलावा पीली चीजों का दान भी कर सकते हैं। प्रत्येक बृहस्पतिवार आटे में चुटकी भर हल्दी मिलाकर उसकी लोई गाय को खिलाना चाहिए। ऐसा करने से विवाह में आने वाली बाधाएं दूर होती हैं और सौभाग्य में वृद्धि होती है।विवाह में विलंब हो रहा है तो भगवान कृष्ण से सच्चे मन से प्रार्थना करनी चाहिए और भगवान श्री कृष्ण के नाम का जप करना चाहिए।जिन जातकों के विवाह में देरी हो रही है, उन्हें प्रत्येक गुरुवार किसी गौशाला में जाकर गायों की सेवा करनी चाहिए और गायों को चारा खिलाना चाहिए और विनम्रता पूर्वक अपने शीघ्र विवाह की कामना करनी चाहिए। शीघ्र सुयोग्य जीवनसाथी पाने के लिए शिव-पार्वती का पूजन करना चाहिए। इसके लिए जातक प्रतिदिन शिवलिंग पर कच्चा दूध, बेल पत्र, चावल, कुमकुम आदि भी अर्पित कर सकते हैं। किसी भी पूर्णिमा पर वट वृक्ष की 108 परिक्रमा करने से विवाह संबंधी बाधा दूर होती है।   गाय को गुड़  व चने की पीली दाल का भोग लगाने से भी विवाह में शीघ्रता आती है|श्री सूक्तम का पाठ करें। छोटी कन्याओं को सफ़ेद बर्फी खिलाएं।