10, Jul 2022

योगिनी दिशाओं

योगिनी दिशाओं के बारे में कहा जाता है कि स्वयं भगवान शिव ने इस दशा को कहा था, मंगला पिंगला धनिया भ्रामरी भद्रिका अलका श्रद्धा और संकटा यह 8 योगिनी दशा में होती हैं।
नाम।                   दशा वर्ष
मंगला से चंद्रमा।    1
पिंगला से सूर्य।      2
धान्या से गुरु।       3
भ्रामरी से मंगल।    4
भद्रिका से बुध।     5
उल्का से शनि।      6
सिद्धा से शुक्र।       7
संकटा से राहु        8
 की उत्पत्ति बताई गई है।

जन्म नक्षत्र संख्या में तीन जोड़कर 8 का भाग देने पर जो भी शेष बचता है उसी क्रम में मंगला आदि योगिनी दशा जानी चाहिए।।

उदाहरण के लिए मान लेना चाहिए।

किसी जातक का जन्म हस्त नक्षत्र के प्रथम चरण में हुआ है।
आकाश जन्म नक्षत्र से 13 प्लस 3 बराबर 16।

इसमें 8 का भाग लिया तो जीरो आया।
अर्थात 8 हुआ। आठवीं संकटा की दशा में जन्म हुआ है संकटा के वर्षमान 8 हैं।


मंगला की महादशा मंगलदाई  होती है। समस्त भौतिक सुख सुविधाओं से युक्त तथा उच्च अभिलाषी होता है ऐसा जातक नाना प्रकार के भोगों को भोगने वाला होता है। मांगलिक कृत करने वाला, सुंदर स्त्रियों का भोग करने वाला तथा ज्ञानवान होता है।

पिंगला की महादशा में जातक के शरीर में अनेकों प्रकार के रोग तथा दुष्टों की संगति और अनेक व्याधि होती है यह दशा ज्यादातर अच्छी नहीं मानी जाती।

धान्या की महादशा में जातक धनी और सुखी होता है। यह प्रकार की सिद्धियों को देने वाली है।

भ्रामरी महादशा में जातक व्यर्थ का भ्रमण करने वाला, व्याकुल, राजा द्वारा दंडित,  निष्कासित होकर भटकने वाला होता है।

भद्रिका महादशा अच्छी मानी जाती है इसमें जातक को अपने प्रियजनों का साथ ग्रह में मंगल कार्य और व्यापार में सफलता प्राप्त होती है।

उल्का महादशा में जातक को मान सम्मान आर्थिक क्षेत्र में हानि का सामना करना पड़ता है । उसके नेत्र और कान में विकार उत्पन्न होते हैं।

सिद्धा महादशा से ही पता चलता है कि यह सिद्धि दायक है उत्तम लोगों को प्राप्त करने में सहायता धन-धान्य से संपन्न बनाती है।

संकटा शब्द का अर्थ ही संकट देने वाला है जातक को अनेक प्रकार के कष्ट भोगने पड़ते हैं अपमानित होना पड़ता है अनेक प्रकार के गुप्त रोग स्त्री एवं पुत्र से दूर शत्रु द्वारा पराजित इस तरह के परिणाम प्राप्त होते हैं।