12, Jul 2022

गुरु पूर्णिमा 2022

'गुरु बिन भवनिधि तरइ न कोई। जो बिरंचि संकर सम होई ।।
तुलसीदास,  रामचरित मानस
 

इसका अर्थ है कि गुरु की कृपा प्राप्ति के बगैर जीव संसार सागर से मुक्त नहीं हो सकता चाहे वह ब्रह्मा और शंकर के समान ही क्यों न हो। गुरु की महिमा का गुणगान सभी सनातनी ग्रंथों में किया गया है। ईश्वर से उच्च स्थान गुरु को दिया गया है। गुरु की महिमा हैं ही इतनी अपरमपार, जिसका वर्णन शब्दों में करना संभव नहीं है।

13 जुलाई 2022 के दिन हम सभी अपने गुरुओं को विशेष सम्मान दे कर, आभार व्यक्त कर सकते हैं। आषाढ़ मास की पूर्णिमा गुरु पूर्णिमा के नाम से जानी जती है। इस दिन सभी अपने गुरुओं का पूजन कर उन्हें यथासंभव उपहार भेंट करते हैं। वैसे तो गुरुओं के ॠण से मुक्त होना संभव नहीं है। फिर भी इस दिन उनका सम्मान देकर उन्हें आत्मिक सुख हम दे सकते हैं।

जिस व्यक्ति के जीवन में गुरु नहीं है, वो व्यक्ति समुद्र  में भटकी हुई नाव के जैसा है। गुरु पूर्णिमा के दिन महाभारत के रचयिता गुरु व्यास की जयंती के फलस्वरूप यह दिन मनाया जाता है। गुरु पूर्णिमा को सभी अपने गुरुओं को स्मरण कर उनका पूजन और दर्शन कर आशीर्वाद लेते है। गुरु के द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलकर जीवन को सार्थक बनाते है।

भारत भूमि धर्म, संस्कार और संस्कृति और परम्पराओं को आदर के साथ मानने वालों की भूमि रही हैं। यहां माता, भूमि और गुरु को सभी रिश्ते नातों से विशेष स्थान दिया गया है। गुरु और माता से बढ़कर किसी को नहीं माना गया है। यहां तक की अनेक धर्म गुरुओं और कवियों ने अपने साहित्य, काव्य में गुरु की महिमा का बहुत गुणगान किया है। ईश्वर को किस प्रकार प्राप्त किया जा सकता है। यह गुरु ही बताता हैं, इसलिए एक बार ईश्वर नाराज हो जाए तो गुरु ईश्वर की नाराजगी दूर करने का साधन बता सकते हैं, परन्तु गुरु रुष्ट हो जाए तो जीवन व्यर्थ हो जाता है। फिर जीवन से मुक्ति का कोई मार्ग नहीं बचता है।

गुरु यदि श्राप दे दें तो उससे मुक्ति संभव नहीं। ईश्वर के श्राप से मुक्ति का मार्ग गुरु के माध्यम से प्राप्त किया जा सकता है। गुरु पूर्णिमा के अवसर पर देश के विभिन्न स्थानों पर गुरु पूजन का आयोजन किया जाता है। पूजा पाठ, दान-पुण्य का आयोजन किया जाता है। आयुधिक काल में गुरुकुल शिक्षा व्यवस्था बहुत कम हो गई है, इसलिए गुरु भी कम हो गए हैं, ऐसे में लोग अपने आध्यात्मिक गुरु और शिक्षकों को इस दिन सम्मानित करते है।  

आध्यात्मिकता को स्वयं में साकार करने के लिए भी गुरु पूर्णिमा दिवस का महत्व है। स्वयं संघर्ष कर समाज को बेहतर करने का सराहनीय प्रयास इस दिन किया जाता है। पौराणिक ग्रंथों में उल्लेखित प्रसिद्ध गुरुओं को इस दिन याद किया जाता है, उनकी कथाओं का श्रवण और पाठ किया जाता है। महापुरुषों के प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्ति करने का यह एक शुभ दिन होता है। भगवान के जितने भी अवतार हुए, लगभग सभी के गुरु रहे हैं, भगवान श्री कॄष्ण हों या भगवान राम हो, दोनों को अपने अवतार में गुरुओं की आवश्य्कता पड़ी। इसका सार यह है कि जब ईश्वर बिना गुरु के अपने जीवन लक्षय को प्राप्त नहीं कर सकता तो हम तो एक इंसान है।
 
गुरु की अंगुली पकडकर हम इस भवसागर से पार हो सकते हैं। गुरु पूर्णिमा को अनेक नाम से जाना जाता है। वेदव्यास जी का जन्म दिवस होने के कारण यह दिन व्यास पूर्णिमा के नाम से भी पुकारा जाता है, आषाढ़ मास में आने के कारण इसे आषाढ़ी पूर्णिमा भी इसे कहा जाता है। गुरु ठीक उसी प्रकार हमें मार्ग दिखाते हैं जैसे काले बादलों के मध्य चंद्र अपने प्रकास से इस धरा को रोशन कर देते है। गुरु अपने ग्यान से अपने शिष्य के जीवन को सफलता के प्रकाश से भर देता है।
 
अध्ययन और शोध के लिए वर्षा ॠतु का समय सबसे उपयुक्त समय होता है, मौसम भी भक्ति, योग और शिक्षा ग्रहण के अनुकुल्ल होता है। इस दिन देश के लगभग सभी मंदिरों में विशेष पूजा की जाती है। शिक्षा संस्थानों में यह दिन विशेष रूप से मनाया जाता है। शिक्षकों को सम्मानित किया जाता है। सभी अपने गुरुओं का आशीर्वाद लेते है, इस दिन। माता-पिता प्रथम गुरु होते हैं इसलिए उनका आशीर्वाद भी इस दिन विशेष रूप से लिया जाता है। अपने गुरुओं की श्रीचरणों में भेंट समर्पित कर, गुरुओं का आशीर्वाद लिया जाता है। प्रसाद वितरण किया जाता है। बंगाल में बाल मुंडा कर संत इस दिन परिक्रमा पर जाते है। मथुरा के ब्रज धाम में इस दिन से गोवर्धन परिक्रमा शुरु होती है। गुरु को साक्षात देव मानकर उनका पूजान इस दिन किया जाता है।

जिन व्यक्तियों के लिये इस दिन अपने गुरु का आशीर्वाद लेना संभव न हो वो इस दिन गरीबों को भोजन करायें। गुरु का ध्यान करें। ध्यान में दर्शन करें। किसी गुरु तुल्य व्यक्ति को वस्त्र, दक्षिणा और उपहार भेंट करें। इसके अतिरिक्त इस दिन धर्मग्रंथों की भी पूजा की जाती है।

यदि आपके पास अपने गुरु को समर्पित करने के लिए कुछ न हों तो आप अपने गुरु के श्री चरणों में अपना अहंकार, ग्यान, क्रोध और मोह अर्पित कर दें।

गुरु की महिमा का वर्णन हम कितना भी करें वह कम है। क्योंकि कबीर दास जी ने भी कहा है कि -

गुरु गोविंद दोऊ खड़े काके लागू पाय।
बलिहारी गुरू अपने गोविन्द दियो बताय।।

हम सभी इस आलेख के द्वारा अपने गुरुओं को सादर वंदन करते है।