16, Jul 2022

धन योग

आज के युग में धन न केवल प्राणी जीवन के लिए मूलभूत आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए आवश्यक है , अपितु व्यक्ति के जीवन की उन्नति के लिए भी उतना ही अनिवार्य हो गया है , आज के समय में धन के अभाव के कारण व्यक्ति अपनी प्रतिभा उजागर करने में असमर्थ रह जाता है अर्थात अपनी प्रतिभा पूर्ण रूप उजागर नहीं कर पाता है , वह श्रेष्ठ शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाता है , जिसके कारण उसकी स्वयं की उन्नति तो रुक जाती है और साथ ही वह समाज और राष्ट्र को अपनी योग्यता एवं प्रतिभा के अनुरूप योगदान करने में समर्थ नहीं हो पाता है , यही एक मुख्य कारण है की हमारे ज्योतिर्विदों व विद्वानों के पास आने वाले अधिकतर जातकों के प्रमुख प्रश्नों में धन सम्बन्धी प्रश्न ही होते हैं I जन्म पत्रिका में एकादश भाव आय से सम्बन्धित कहा गया है, दशम भाव कर्म अर्थात रोजगार, व्यवसाय भाव होता है , जन्म कुंडली में इन दोनों भावों का आपस में बहुत महत्व होता है , अर्थात कर्म का प्रतिफल आय के रूप में ही प्राप्त होता है , इसी कारण दशम से अगला भाव आय का होता है , आय होने पर व्यक्ति व्यय करता है , इसी लिए  कुंडली में द्वादश भाव व्यय से सम्बन्ध रखता है , आय और व्यय के अंतर को कुंडली में द्वितीय भाव सूचित करता है , यह जातक के संचित और बचत का भाव है , की व्यक्ति के पास कितना धन है अर्थात जातक कितना धनी हो सकता है , इस का विचार कुंडली के द्वितीय भाव जाना जाता है I कुंडली में पंचम और नवम भाव लक्ष्मी भाव माने गये है अत: इन भावो से भी धन का विचार किया जाता है I जन्म कुंडली में लग्न और तृतीय भाव का भी जातक की आर्थिक स्थिति पर प्रभाव पड़ता है , प्रथम भाव स्वयं जातक का प्रतिनिधित्व करता है वहीं कुंडली का तृतीय भाव जातक के साहस , पराक्रम और उद्यम का प्रतीक है , अत: इन सबके बिना धन की कल्पना नहीं की जा सकती है , और कहा भी गया है की

“उद्यमेन् हि सिध्यन्ति कार्याणि न मनोरथै: I

न हि सुप्तस्य सिंहस्य प्रविशन्ति मुखे मृगा: II”

पंचमेश और नवमेश विशेष धन दायक होते है , इन दोनों से जो भी ग्रह युत हों , वे अपनी अपनी दशा में धन दायक होते हैं , ग्रहों की क्रूरता और सौम्यता के अनुसार ही जातक क्रूर या सौम्य कार्यों से धनार्जन करता है , अधिक या कम धनार्जन कुंडली में ग्रहों के बलाबल पर निर्भर करता है I

 यदि आय भाव और धन भाव तथा उनके स्वामियों का सम्बन्ध लग्न एवं तृतीय अथवा इनके भावेशों से हो रहा हो तो जातक स्वयं सम्पति आदि अर्जित कर उसका उप्बोग करता है I    

यदि आय भाव और धन भाव तथा उनके स्वामियों का सम्बन्ध सप्तम या सप्तमेश से हो रहा हो तो जातक को अपने जीवन साथी के सहयोग से धन आयेगा I

यदि आय भाव और धन भाव तथा उनके स्वामियों का सम्बन्ध नवम एवं दशम भाव से हो रहा हो तो जातक  अपने पिता या बड़े बजुर्गों के सहयोग से धनार्जन करेगा , इस प्रकार आयेश और धनेश का सम्बन्ध अष्टम भाव या अष्टमेश से हो तो जातक अनैतिक एवं अवैधनिक कार्यों से धन परत करेगा I कुंडली में यदि आयेश और धनेश का सम्बन्ध अष्टमेश या द्वादेश या इन भावों के स्वामियों से है तो जातक विदेशों से अथवा बहुराष्ट्रिय कम्पनियों के माध्यम से धन प्राप्त करता है I धन प्राप्ति के लिए होरा अर्थात वर्ग 2 और दशांश यानि वर्ग 10 कुंडलियों का भी आंकलन करना आवश्यक होता है , जन्म कुंडली में और भी ऐसे योग होते है जो जातक को एक समय विशेष पर धन प्राप्ति में सहायक होते है I