26, Jul 2022

भाग्य कौन बदल सकता है ?

कर्म को प्रधान कहा गया। प्राणी के द्वारा जो भी कार्य किया जाता है। उसी को कर्म कहा जाता है। इंसान को कब सफलता  प्राप्त होती है। क्या आप जानते है। जब इंसान एक जुट एकाग्र होकर जब किसी भी कार्य को करने मे लग जाता है। तभी उस को सफलता मिलती है। आप ने सुना भी होगा कि करनी और कथनी में अंतर होता है। इस का मतलब यह है। कि आप कर्म तो करते नही और बोलते रहते हो। जैसे कई व्यक्ति कहते है। कि मै बहुत बड़ा धनवान बनना चाहता हुँ। लेकिन वह कर्म करने के लिए आगे नहीं बढ़ता। क्योकि वह व्यक्ति जो धनवान बनने की सोचता है। लेकिन धनवान बनने वाले कर्म (कार्य ) नहीं करता तो कैसे वह धनवान बनेगा।

 भाग्य से ज्यादा कभी भी आप को नहीं मिल सकता चाहे आप कितना भी प्रयास कर लो जो आप के भाग्य में नहीं होगा वह कभी भी आप को नहीं मिलेगा। चाहे आप कितना भी प्रयास कर लो। आप के आगे रखा भोजन भी आप से दूर चला जायेगा। आप उस भोजन को किसी भी कारण वश ग्रहण नही कर पाओगे। जो भाग्य में होता है। वह भाग कर के भी आप के पास आ जायेगा। और जो आप के भाग्य में न हो वह आकर भी वापस चले जायेगा।

मनुष्य का बांया हाथ ( उल्टा हाथ ) भाग्य का होता है। और सीधा हाथ कर्म का होता है। कर्म प्रधान होता है। लेकिन भाग्य विधाता होता है। विधि का विधान को ही भाग्य कहा जाता है।  कर्म करना हमारे हाथ में है। और भाग्य उस परम पिता परमात्मा के हाथ में है। कि उसकी क्या इच्छा वह आप की मेहनत को सफल करे या असफल करें । यह वही जान सकता है। इसके बारे में जानना बहुत ही असम्भव है। जन्म लेने से लेकर मृत्यू तक मनुष्य कर्मों के बंधन में फसा रहता है। और भाग्य से उसको यश, लाभ, हानि जय, विजय प्राप्त होती है। सोचना,विचार करना इंसान के हाथ में है। लेकिन सफलता मिलनी इंसान के हाथ में नहीं है।

आप लोगों ने कही परिवारों में देखा होगा। कि एक अमीर घर में जन्म लेने वाला बच्चा जिसका बहुत प्यार से लालन, पोषण बहुत ढंग से उसे पढाया लिखाया जाता है। हर प्रकार की उसकी परिवार, स्कूल, खेल कूद की अवश्यकता अनुसार समान उसको दीया जाता है। लेकिन फिर भी वह परिवार अपनी संतान को पढाई में सफलता प्राप्त नहीं करवा पाता। क्या उसके परिवार से कोई कमी रह गई। नही यह उसका भाग्य है। क्योकि विद्या प्रारब्ध (भाग्य) से प्राप्त होती है। संतान, विवाह, जन्म, मृत्यू, भोजन, राजयोग ये सब भाग्य से मिलत है। जब कोई भी मनुष्य संतान उत्पति के लिए कर्म करता है। तो उसे संतान की प्राप्ति क्यो नही होती। कई परिवारों में देखा गया है। कि उन्हे लड़के की जरूरत है।तो उन्हे लड़कियां ही लड़कियां पैदा हो रही है। और जिन्हें लड़की चाहिए। उन्हें लड़के ही लड़के पैदा हो रहे है। आप इस को क्या कहेंगे। क्या कर्म में कमी रह गई या भाग्य साथ नही दे रहा।

संतान की प्राप्ति हमेशा भाग्य से प्राप्त होती है। यह सब लिखित है। कि आप की संतान भविष्य में आप के मान की वृद्धि करेगी या आप के मान -सम्मान प्रोपर्टी को (का नाश करेगी) कम करेगी। विवाह भी आप बहुत सोच समझ के करते है। लेकिन फिर भी आप का विवाह जीवन सफल नहीं हो पाता। जहाँ आप का विवाह होना निश्चित था। उस परिवार में न होकर दूसरे परिवार में क्यों होता है। क्योकि विधि का विधान यही था। क्योकि आप के लिए लड़का, लड़की पहले से निश्चित है। कि आप का गृहस्थ जीवन किसके साथ व्यतीत होगा। चाहे हस के हो रो के हो, प्रेम पूर्वक हो चाहे क्लेश कर के व्यतीत हो उसी परिवार में  होगा और कब तक होगा यह भी निश्चित है। इस प्रकार जन्म मृत्यू भी निश्चित है। कि किस का जन्म किस परिवार धनवान के यहाँ या निर्धन के यहाँ, किस स्थान में ओर मृत्यू किस स्थान में होगी। और कब होगी। यह सब भी निश्चित है। आप ने किस समय कहाँ का भोजन करना है। यह भी निश्चित है। और भाग्य में राजा बनना न बनना भी निश्चित है। राजयोग सरकारी नौकरी मतदान में जीतना न जीतना निश्चित है। ये सब जो आप को बताया गया है। ये सब विधि का विधान है। इस सुख को न ही आप से कोई  छीन सकता है। और न ही आप को कोई भी इस प्रकार का दुख दे सकता है।

कैसे बनता है भाग्य
वह पूर्व जन्म के कर्म जिनका फल चाहे वह सुख हो या दुःख हम वर्तमान जीवन में भोगते है भाग्य बनाते है। हर व्यक्ति का भाग्य उसके पूर्व जन्म के कर्मों के अनुसार निर्धारित होता है और उन्ही कर्मों की वजह से वर्तमान जन्म में एक विशेष तरीके से व्यवहार करने के लिए बाध्य होता है। सुख-दुःख, धन-गरीबी, क्रोध, अहंकार, आदि गुण जो भी हम जीवन में पाते हैं वह सब पूर्व निर्धारित होता है। ज्योतिष केवल घटनाएं जानने का विज्ञान नहीं है, वह हमें हमारा भूत और भविष्य भी बताता है। साधारण व्यक्ति भाग्य को परिवर्तित नहीं कर सकते हैं और ना ही भाग्य के विषय में आसानी से जाना जा सकता है। क्योकि कर्म के फलों में परिवर्तन करने के लिए एक साधनारत ज्योतिषी और परिश्रमी साधक को लम्बे समय तक धैर्य के साथ प्रयत्न करने के आवश्यकता होती है।

समय क्या है ? और कैसे बनता है ?  
समय ही एक सबसे बड़ी शक्ति है जो की पूरे ब्रह्माण्ड को नियंत्रित करती है। समय की निश्चित गति होती है। ग्रहों की अलग अलग गति हमारे जीवन में भिन्न भिन्न समय लाती है। उदहारण के लिए धरती का अपनी धुरी पर घूमना दिन और रात बनाता है, चन्द्रमा की पृथ्वी के चारों ओर गति महीने, और सूर्य के केंद्र में धरती की परिक्रमा वर्ष निर्धारित करती है। समय के हर पल की गति में एक विशेष गुण होता है। जब भी हमारे जीवन में कुछ विशेष समय होता है, वह सृष्टि के समय की तरंगों के समानांतर होता है। उदाहरण के लिए हमारे जीवन में विवाह अथवा व्यवसाय शुरू करने का समय, अन्तरिक्ष के समयचक्र में भी उर्जा की अधिकता से पूर्ण होता हैं।

ग्रह, हम और समय
ग्रह हमारे कर्मों का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी गति यह निर्धारित करती है की कब किस समय की उर्जा हमारे लिए लाभदायक है या हानिकारक है। समय की एक निश्चित्त प्रवृति होंने के कारण एक कुशल ज्योतिषी उसकी ताल को पहचान कर भूत, वर्तमान और भविष्य में होने वाली घटनाओं का विश्लेषण कर सकता है। एक ही ग्रह अपने चार स्वरूपों को प्रदर्शित करता है। अपने निम्नतम स्वरुप में अपने अशुभ स्वभाव/राक्षस प्रवृत्ति को दर्शाते हैं। अपने निम्न स्वरुप में अस्थिर और स्वेच्छाचारी स्वभाव को बताते हैं। अपने अच्छे स्वरुप में मन की अच्छी प्रवृत्तियों, ज्ञान, बुद्धि और अच्छी रुचियों के विषय में बताते हैं। अपनी उच्च स्थिति में दिव्य गुणों को प्रदर्शित करते हैं, और उच्चतम स्थिति में चेतना को परम सत्य से अवगत कराते हैं। उदहारण के लिए मंगल ग्रह साधारण रूप में लाल रंग की ऊर्जा का प्रतिनिधित्व करता है। अपनी निम्नतम स्थिति में वह अत्याधिक उपद्रवी बनाता है। निम्न स्थिति में व्यर्थ के झगड़े कराता है। अपनी सही स्थिति में यही मंगल ऐसी शक्ति प्रदान करता है की निर्माण की असंभव संभावनाएं भी संभव बना देता है।

ज्योतिष विज्ञान के माध्यम से जब हमें समस्याओं का कारण ग्रहों के माध्यम से पता चलता है, तो उन्ही की उर्जा को नकारात्मकता से हटाकर पूजा, दान, मंत्र, इत्यादि विधानों से सकारात्मक रूप में बदल देते हैं क्योंकि ऊर्जा का कभी क्षय नहीं होता किन्तु उसका स्वरुप परिवर्तित किया जा सकता है। यही सूक्ष्म परिवर्तन भाग्य को परिवर्तित करने में बड़ा सहायक होता है। ग्रह केवल बंधन का कारण ही नहीं वरन उन समस्याओं से मुक्ति का मार्ग भी दिखाते हैं। ज्योतिष अगर सही ढंग से प्रयोग किया जाए तो यह हम में और विश्व चेतना में सामंजस्य स्थापित करता है और ग्रहों की भौतिक सीमाओं से परे जाने की शक्ति देता है, जो कि मोक्ष के लिए आवश्यक है।