27, Jul 2022

कर्म और ज्योतिष विज्ञान

ज्योतिष विज्ञानं हमारे कर्मो का ढांचा बताता है । यह हमारे भूत वर्तमान और भविष्य में एक कड़ी बनता है। कर्म चार प्रकार के होते है: 1- संचित 2- प्रारब्ध  3- क्रियमाण  4- आगम

संचित :- संचित कर्म समस्त पूर्व जनम के कर्मो का संगृहीत रूप है । हमने जो भी कर्म अपने पिछले  सारे जन्मों में जानकार या अनजान रूप से किये होते है वह सभी हमारे कर्म खाते में संचित हो जाते है। कर्म जैसे -२ परिपक्व होते जाते है  हम उसे हर जन्म में भोगते है। जैसे किसी भी वृक्ष के फल एक साथ नहीं पकते, बल्कि फल   प्राप्ति के महीने में अलग - अलग  दिनों में ही पकते है।

प्रारब्ध :-  प्रारब्ध कर्म, संचित कर्म का वह भाग होता है जिसका हम भोग वर्तमान जनम में करने वाले है । इसी को भाग्य भी कहते है। समस्त संचित कर्मों को एक साथ नहीं भोग जा सकता। वह कर्म जो परिपाक हो गया होता है। यही समय दशा अन्तर्दशा  के अनुसार जाना जाता है ।  क्रियमाण - क्रियमाण कर्म वह कर्म है जो हम वर्तमान में करते है किन्तु इसकी स्वतंत्रता हमारे पिछले जन्म के कर्मो पर निर्भर करती है । क्रियमाण कर्म इश्वर प्रदत्त वह संकल्प शक्ति है, जो हमारे कई पूर्व जन्म के कर्मो के दुष्प्रभावों को समाप्त करने में सहायता करती है। उदाहरण के  लिए वर्तमान जन्म में माना कि क्रोध अधिक आता है। यह क्रोध कि प्रवृत्ति पिछले कई जन्मों के कर्मों के कारण बन गयी है। यह तो सर्व विदित है कि क्रोध में कितने गलत कार्य हो जाते है। अगर कोई ध्यान और अन्य उपायों के द्वारा क्रोध को सजग रहकर नियंत्रित करे तो धीरे - धीरे प्रयासों के द्वारा क्रोध पर संयम पाया जा सकता है और भविष्य में कई बुरे कर्मों और समस्याओ जैसे कि रिश्तों में तनाव इत्यादि को दूर किया जा सकता है।

आगम :-  आगम करम वह नए करम है जो की हम भविष्य में करने वाले हैं। यह कर्म केवल ईश्वर की सहायता से ही संभव है। जैसे की भविष्य में होने वाली घटनाओं का पूर्वाभास और उस समस्या के समाधान के लिए ईश्वर के द्वारा दिशा निर्देश। जैसे- जैसे  हमारे पाप कर्मों का बोझ कम होता जाता है, उच्च शक्तियों की सहायता मिलने लगती है। हम अपना भविष्य अपने विचारों, शब्दों और कर्मो के द्वारा बनाते है। कर्म दो प्रकार के होते है - शुभ और अशुभ। दूषित कर्म जीवन में दुःख लाते है । हमारे पूर्व जनम के कर्म मन को प्रभावित करते है । अगर हम नकारात्मक विचारों को, जो की मन को कमजोर बनाते है, ध्यान और उपायों के द्वारा दूर करें तो यही मन सकारात्मक विचारों की उर्जा से हमारे कर्मो को शुद्ध कर देता है जिससे एक नए भविष्य का निर्माण संभव हो जाता है । उपायों के द्वारा जब हम आपने पुराने कर्मो को संतुलित कर देते है तो मन के ऊपर से उनकी बाधा हट जाती है। भविष्य उसी तरह से परिवर्तित होता है जब चेतना अथवा मन परिवर्तित होता है । किसी भी समस्या से मुक्ति मिल सकती है आवश्यकता केवल  निष्कपट रूप से सही दिशा में प्रयास करने की होती है। 

भाग्य कैसे बदलता है  :-  हम जो भी मानसिक, शारीरिक अथवा वाचिक कर्म करते हैं, वह हमारे मानस पटल पर संस्कार बन कर अंकित हो जाते हैं। उदाहरण -  यदि आम का बीज बोते हैं, तो हमें आम ही मिलते हैं। उससे हम अन्य फल नहीं पा सकते। किन्तु आम का बीज सही रूप से फल दे इसके लिए बाह्य परिस्थितियाँ भी उत्तरदायी होती हैं, जैसे की अच्छी ज़मीन, खाद और समय पर पानी।  इस उदाहरण में बीज कारण(cause) हैं और बाकी चीज़ें ऐसे कारक जो की परिवर्तित किये जा सकते हैं (वेरिएबल्स)। इससे यह तो सिद्ध हो गया की किसी भी कारण (बीज) को फलीभूत होने के लिए उपयुक्त परिस्थितियाँ चाहिए होती हैं। अब हम यह मान लेते है की हमने अच्छा बीज, अच्छी ज़मीन में बोया और उसको समय समय पर खाद-पानी दिया किन्तु फिर भी फल के लिए हमें पौधे के वृक्ष बनने का और फल पाने के लिए ग्रीष्म ऋतु की प्रतीक्षा करनी पड़ती है। इसी तरह, जब हम सद्कर्म रुपी बीज बोते हैं या उपाय करते हैं, तो उसके फल के लिए हमें धैर्य रखना चाहिए और समय की प्रतीक्षा करनी चाहिए। इसी बात को अब हम बुरे कर्मों के लिए समझते हैं। अगर हमने पिछले जनम में कोई बुरा कर्म रुपी बीज बो रखा है, अगर हम उसे सही परिस्थितियाँ उपलब्ध न कराएं तो उसका फल हमें नहीं मिलेगा। यही भविष्य बदलने की कुंजी है।