28, Jul 2022

संघर्षों से कामयाबी दिलाते हैं नीच भंग राजयोग

जन्म कुंडली को जीवन का आईना कहा जाता है। जीवन का कौन सा भाग कैसा रहेगा? यह कुंडली विश्लेषण के द्वारा जाना जा सकता है। जन्मकुंड्ली में ग्रह कई अवस्थाओं में स्थित होते हैं, कुछ ग्रह उच्च, कुछ मूलत्रिकोण और कुछ नीचस्थ होते है। कुछ कुंडलियों में दो या दो से अधिक ग्रह नीच राशि में स्थित होते है। ज्योतिषीय पक्ष से सामान्यत: ग्रहों का नीच राशिस्थ होना अशुभ माना जाता है। नीच के ग्रहों को लेकर एक अन्य अवधारणा हम सभी के मन में हैं कि नीच के ग्रह सदैव अशुभ फल ही देते है। परन्तु अनुभव में ऐसा नहीं पाया गया है। आगे बढ़ने से पूर्व यह जान लेना चाहिए कि ग्रह कब नीच का होता है? ग्रह का अपनी उच्च की राशि से सातवीं राशि में होना नीचस्थ कहलाता है। इस स्थिति में ग्रह अपने पूर्ण शुभ फल देने की स्थिति में नहीं होता है। परन्तु सदैव ही ऐसा हो यह आवश्यक नहीं है। उच्च का ग्रह सदैव ही अच्छा फल देगा और नीच का ग्रह अशुभ फल ही देगा, सूक्ष्म अध्ययन किए बिना किसी भी ग्रह के बारे में कोई अवधारणा बनाना सही नहीं है। ग्रह की स्थिति का वास्तविक फलादेश  करने के बाद ही ग्रह फल करना उचित रहता है। अनेक बार कुंड्लियों में यह देखा गया है कि ग्रह नीच राशिस्थ होने पर भी उच्च ग्रह के समान फल देता है। और कई बार उच्च राशि में स्थित ग्रह भी नीचस्थ फल देता है। जन्म कुंडली में जब ग्रह नीच भंग राजयोग से युक्त हो तो नीच का ग्रह भी उच्च के ग्रह के जैसा फल दे सकता है।

नीचभंग राजयोग निम्न ज्योतिषीय स्थितियों पर निर्भर करता हैं-

जन्मपत्री में जब कोई ग्रह नीच राशि का स्थित हो तो और संबंधित ग्रह की राशि का स्वामी नीचस्थ ग्रह को देख रहा हो। जैसे- सूर्य तुला राशि में स्थित हों और शुक्र तुला राशिस्थ सूर्य को देखता हो तो, इस स्थिति में ग्रह का नीचभंग हो जाएगा। 

-) नीचस्थ ग्रह जिस राशि में हों उस राशि का स्वामी यदि उच्चस्थ हो तो नीच भंग राजयोग बनता है।

-) नीच का गरह यदि नवमांश कुंड्ली में जाकर उच्चस्थ हो जाता है, तब भी ग्रह का नीच भंग हो जाता हैं और ग्रह राजयोग के जैसा फल देता है। 

-) जिस राशि में ग्रह नीचस्थ हों उस राशि का स्वामी स्वग्रही होकर जन्मपत्री में स्थित हों तो नीचभंग राजयोग बनता है।

-) नीचस्थ राशि में स्थित ग्रह से सातवें भाव में नीचस्थ ग्रह स्थित हो तो दोनों ग्रहों का नीचभंग होता है, और यह उच्चस्थ ग्रह से भी बेहतर फल देता है।

-) ग्रह जिस राशि में नीच का हो रहा हों उस राशि का स्वामी यदि चंद्र से केंद्र में स्थित हों तो भी नीचभंग राजयोग बनता है।

-) नीच भंग राजयोग में यह नहीं समझना चाहिए कि ऐसे जातकों का जन्म धनाढ़य राजघरानों में होता हैं बल्कि ऐसा व्यक्ति अपने पुरुषार्थ से धनाढ़य बनता है। ऐसे जातकों की सफलता का श्रेय स्वयं व्यक्ति को ही दिया जाता है। जन्मपत्री में एक से अधिक ग्रहों का नीचभंग होना अतिशुभ माना जाता है। ऐसे योग व्यक्ति को सफलता की ऊंचाईयों पर लेकर जाते हैं।

आईये अब कुछ ऐसे व्यक्तियों की कुंड्लियों का विश्लेषण करते हैं जिन्हें नीचभंग राजयोग ने सफलता की ऊंचाईयां दी-

अमिताभ बच्चन :-  अमिताभ बच्चन जी कुंडली में नीचस्थ शुक्र के साथ उच्चस्थ बुध स्थित है। इस भाव में शुक्र के साथ मंगल और सूर्य भी स्थित है। यहां उच्चस्थ और नीचस्थ दोनों ग्रह युति संबंध में हैं जो उत्तम स्तर का नीचभंग राजयोग निर्मित कर रहा है। शुक्र वैसे भी इस लग्न के लिए योगकारक ग्रह होते है। योगकारक ग्रह का नीचभंग होना, इस योग की शुभता को बढ़ा रहा है। इस योग ने अमिताभ बच्चन को संघर्ष के बाद सफलता और उन्नति दी। आज अमिताभ जी, आयु के चतुर्थ भाग में होने पर भी गजब की ऊर्जा शक्ति के साथ कार्य रहे है। इस आयु में अमिताभ जी की ऊर्जा शक्ति देखते ही बनती है। जो अन्य कलाकारों के लिए प्रेरणा का स्त्रोत है। कुंडली में पांच ग्रह वाणी भाव को दृष्ट कर प्रभावित कर रहे हैं। द्वितीयेश का द्वितीय भाव को देखने के फलस्वरुप वाणी में ओज और जोश प्रत्यक्ष रुप से देखा जा सकता है। लग्न भाव पर केतु/राहु और शनि की वक्री दृष्टि इन्हें लम्बा कद और दूरदर्शिता दे रही है। कुंडली में नीचभंग राजयोग अष्टम भाव में बनने के कारण इन्हें जीवन में बार बार दिक्कतों का सामना भी करना पड़ा है। कई बार जीवन के मुश्किल स्थितियों से बाहर आकर इन्होंने सफलता अर्जित की है। 

अनिल अंबानी :-  मकर लग्न और वॄषभ राशि की कुंड्ली में जन्म लेने वाले अनिल अंबानी आज किसी परिचय के मोहताज नहीं है। इनकी कुंडली में चतुर्थेश और दशमेश मंगल नीचस्थ अवस्था में सप्तम भाव में स्थित है। चंद्र की कर्क राशि में मंगल नीचस्थ होते हैं, कर्क राशि का स्वामी चंद्र उच्चस्थ अवस्था में स्वयं से केंद्र में स्थित है। आयेश मंगल का नीचभंग चंद्र से होने और धन कारक गुरु की नवम दॄष्टि ने इन्हें धन-धान्य से परिपूर्ण किया।  

 शरद पवार :- शरद पवार जी की कुंड्ली वृश्चिक लग्न और मेष राशि की है। इनकी कुंड्ली में शनि नीच राशि में स्थित है। नीच राशि का स्वामी मंगल चंद्र से सप्तम में, केंद्र में स्थित है। नीचस्थ शनि मंगल की राशि में नीच अवस्था प्राप्त कर रहा हैं, मंगल स्वराशि शुक्र के साथ स्थित हो नीच भंग राजयोग का निर्माण कर शुभता दे रहा है। शरद पवार राजनैतिक क्षेत्र में एक जाना-माना नाम है। इन्हें यह नाम एकाद्श भावस्थ राहु ने दिया। राहु इस कुंडली में अपनी मूलत्रिकोण राशि में स्थित है। नीचस्थ शनि की दशा में इन्होंने सक्रिय रुप से राजनीति में अपना कार्य शुरु किया अपनी पार्टी का निर्माण किया और राजनीति में सफलता की सीढ़ी पर प्रथम कदम रखा। 

सचिन तेंदुलकर :- सचिन तेंदुलकर का जन्म सिंह लग्न और धनु राशि में हुआ है। कुंड्ली में बुध, गुरु, राहु और केतु नीच राशि में स्थित है। बुध गुरु की मीन राशि में नीच राशि में स्थित है। मीन राशि का स्वामी गुरु भी छ्ठे भाव में मकर राशि में नीचस्थ है। गुरु का नीच भंग उच्च के मंगल की युति होने से हो रहा है। इनकी कुंडली में नीचभंग योग के साथ साथ विपरीत राजयोग भी बन रहा है। एक साथ दो बड़े विशेष शुभ योगों के बनने के फलस्वरुप सचिन तेंदुलकर ने क्रिकेट की दुनिया में अपना नाम रोशन किया। 

किरण बेदी :-  इनका जन्म कन्या लग्न और वृश्चिक राशि में हुआ। पुरुषार्थ भाव में नीचस्थ चंद्र स्थित है। लेकिन चंद्र स्थित राशि के स्वामी मंगल की इन पर सातवीं दृष्टि है। इस प्रकार यहां चंद्र का नीचभंग हो रहा है। गुरु भी इस राशि में नीचस्थ है। लेकिन नवमांश कुंडली में गुरु की स्थिति में सुधार हो गया हैं वहां ये स्वराशि मीन में स्थित है। इससे गुरु का भी नीचभंग हो रहा है। चंद्र आयेश है और उनका नीचभंग होना इन्हें करियर में सफलता के शिखर पर ले गया। शिक्षा कारक गुरु का पंचम में स्थित हो नीच भंग होना इन्हें शिक्षा के शिखर पर ले गया। कुंड्ली की यह विशेषता है कि भाग्येश शुक्र और कर्मेश बुध के मध्य राशि परिवर्तन हो रहा है।   

 शिवराज सिंह :- शिवराज सिंह की कुंडली वृषभ लग्न और मकर राशि की है। लग्न में मंगल, सप्तम में गुरु, पंचम में राहु, एकादश भाव में केतु, बुध और शुक्र स्थित है। दशम भाव में सूर्य, नवम भाव में चंद्र और अष्टम भाव में शनि स्थित है। आय भाव में नीचस्थ बुध उच्च के शुक्र के साथ स्थित है। बुध और शुक्र की यह युति नीचभंग राजयोग निर्मित कर रही है। इस लग्न के लिए बुध और शुक्र दोनों केंद्र भाव के स्वामी होने के कारण अत्यंत शुभ है। द्शमेश का दशम भाव को देखना, दशम में सूर्य और आय भाव में उत्तम स्तर के नीचभंग राजयोग के बनने के फलस्वरुप इन्हें राजनैतिक जीवन में सफलता मिली।