29, Jul 2022

कुंडली में वैदव्य दोष (विधवा दोष)

समय बदला और समय के साथ नारी की स्थिति भी बदली है। वैदिक काल नारी प्रधान समाज था।  इसके बाद समय का पहिया घूमा और स्त्री का वर्चस्व  कम होना शुरू हो गया। नारी को सती प्रथा, बाल विवाह, देवदासी प्रथा, अशिक्षा, विधवा अभिशाप, कन्या भूर्ण ह्त्या आदि अत्याचारों  का सामना करना पड़ा। नारी के विषय में यहां तक कहाँ गया की स्त्री यदि वेदमंत्रों का श्रवण मात्र भी कर लें तो उसके लिए अपमानजनक शब्दों का प्रयोग किया गया। पश्चिम देशों से लेकर भारत तक सभी देशों में किसी न किसी स्तर पर महिलाओं को शोषण होता रहा है।

प्राचीन काल में  बाल विवाह की प्रथा प्रचलित थी, इसलिए बहुधा बाल विवाह होते थे,  इसीलिए बाल विधवाओं के मामलें भी प्राय: सामने आते है। किसी बालिका का बालपन में विधवा हो जाना, सम्बंधित  बालिका के लिए भाग्य का कुठारघात तो था ही, साथ ही उसका जीवन नरकीय भी हो जाता था। समाज में उसे हीन समझा जाने लगता था, किसी सुकार्य में सम्मिलित होने के अधिकार उसे ले लिए जाते थे। बालविधवा की स्थिति यकीन समाज में शोचनीय थी, उसे मानसिक, शारीरिक और सामाजिक अत्याचारों  का सामना करना पड़ता था। हिन्दू परंपरा में किसी भी स्त्री के लिए  विधवा बनना एक अभिशाप से कम नहीं है। आज हम बालविधवा की स्थिति का विचार नहीं करने जा रहे है, बल्कि आज हम विधवा होने के कारणों का ज्योतिषीय विश्लेषण करने जा रहे हैं;- 

बाल विधवा से अभिप्राय १५ साल से कम आयु की कन्याओं का विधवा होना। विधवा होने का अर्थ है, एक स्नेह पूर्ण जीवन को खोना, एक सुखी वैवाहिक जीवन का अंत होना। यह मांगलिक दोष और ज्योतिषीय योगों के फलस्वरूप हो सकता है।

वैदिक ज्योतिष कुंडली के अनुसार सातवां घर 12 भावों में से एक बहुत महत्वपूर्ण भाव है। इस भाव से विवाह और व्यवसाय, साझेदारी का विचार किया जाता है। विवाह, वैवाहिक जीवन और विवाह की स्थिति आदि सभी बातों के लिए सप्तम भाव का अध्ययन किया जाता है। सप्तम भाव, सप्तमेश और कारक ग्रह गुरु की स्थिति के अनुसार विवाह के बाद आने वाले जीवन को जाना जा सकता है। सप्तमेश का त्रिक भावों में जाना या इन भावों के स्वामियों से संबंध बनाना वैवाहिक जीवन के सुखों में कमी करता है। वैदिक ज्योतिष शास्त्र यह कहते है कि यदि सप्तम भाव में मंगल स्थित हो तो दो विवाह होने की संभावनाएं बनती है। जन्म पत्री के सातवें और दूसरे भाव का पीड़ित होना, और गुरु का पीडित होना, विधवा होने का कारण बन सकता है।  

-) सप्तम भाव विवाह भाव हैं, इस भाव में मंगल और पाप ग्रहों की स्थिति कन्या की कुंडली में होने पर विधवा योग बनाती है। 

-) चन्द्रमा से सातवें या आठवें भाव में पापग्रह हो तो मेष या वृश्चिक राशिगत राहु और आठवें या बारहवें स्थान में तो ऐसी कन्या निश्चय ही विधवा होती हैं! यह योग वृष, कन्या एवं धनु लग्नों में लागु होती है।

-) लग्न हो तो सप्तम भाव में कर्क राशिगत सूर्य मंगल के साथ हो तथा चन्द्रमा पाप पीड़ित हो तो यह योग बनता है! ऐसी स्त्री विवाह के सात – आठ वर्ष के अन्दर ही विधवा हो जाती है।

-) लग्न एवं सप्तम दोनों स्थानों में पापग्रह हो, तो विवाह के सातवें वर्ष पति का देहांत हो जाता हैं।

-) सप्तम भाव में पापग्रह हों तथा चन्द्रमा छठे या सातवें भाव पर हो तो विवाह के आठवें वर्ष स्त्री विधवा हो जाती हैं।

-) यदि अष्टमेश सप्तम भाव में हो, सप्तमेश को पापग्रह देखते हों एवं सप्तम भाव पाप पीड़ित हो तो नव विवाहिता स्त्री शीघ्र विधवा हो जाती है।

-) षष्टम व अष्टम भाव के स्वामी यदि षष्टम या व्यय भाव में पापग्रहों के सात हो तो नव विवाहिता शीघ्र ही वैधव्य को प्राप्त होती हैं।

-) जन्म लग्न से सप्तम, अष्टम स्थानों के स्वामी पाप पीड़ित होकर छठे या बाहरवें भाव में चले जाये तो निसंदेह वैधव्य योग होता हैं।

-) पापग्रह से दृष्ट पापग्रह यदि अष्टम भाव में हो और शेष ग्रह चाहें उच्च के ही क्यों न हो, ऐसी स्त्री विधवा अवश्य होती है।

नोट- यहां ध्यान देने योग्य बात यह है कि उपरोक्त योगों में से कोई एक योग होने पर विधवा होना नहीं समझना चाहिए, इसके लिए आवश्यक है कि दो या दो से अधिक अशुभ योग एक साथ बन रहें हों, साथ ही इन अशुभ योगों से संबंधित ग्रहों की दशा और गोचर भी विवाह के उपरान्त प्राप्त हो रही हों।

01/06/1962, 20:00, दिल्ली :- यह कुंडली एक महिला जातिका की है। कुंड्ली में वॄश्चिक लग्न उदित हो रहा है। वॄषभ का चंद्रमा सप्तम भाव में सूर्य और बुध के साथ है। अष्टमेश बुध और सप्तमेश शुक्र का राशिपरिवर्तन योग बन रहा है, जो वैवाहिक जीवन में सुख-शांति को प्रभावित कर रहा है। विवाह भाव पर केतु की दॄष्टि है। जीवन साथी की आयु के लिए दूसरा भाव और दूसरे भाव के स्वामी को देखा जाता है। दूसरे भाव को सप्तमेश शुक्र अपनी सप्तम दॄष्टि दे रहे हैं। द्वितीयेश गुरु शनि की कुम्भ राशि में है और इन पर किसी भी ग्रह का प्रभाव नहीं है। यहां शनि तृतीयेश और चतुर्थेश है, तृतीय भाव में स्थित है, परन्तु वक्री होने के कारण इनका प्रभाव द्वितीय भाव पर भी है। अत: जीवन साथी की आयु को शनि प्रभावित कर रहे हैं। पति की मृत्यु के समय इनकी आयु 34 वर्ष की थी। 

नवमांश कुंड्ली में द्वितीयेश मंगल है, और सूर्य, शनि व केतु के साथ युति संबंध में है। राहु की दृष्टि भी यहां द्वितीयेश पर आ रही है। विवाह भाव पर मंगल की चतुर्थ दृष्टि आ रही है। सप्तमेश बुध अपने से द्वादश भाव में स्थित है। और द्वादशेश शनि की तीसरी दृष्टि से पीडित है। जन्मकुंडली और नवमांश कुंड्ली दोनों ही जगह द्वितीय भाव, भावेश पीडित है, इसी के चलते इस कन्या को विवाह के कुछ समय बाद ही पति की मृत्यु की स्थिति का सामना करना पड़ता है। राहु में शुक्र की दशा में इनके साथ यह घटना घटी। 

17  नवम्बर 1960, 09:30, दिल्ली :- इस जातिका की कुंडली  धनु लग्न और तुला राशि की है। विवाह भाव में मंगल की स्थिति, शुक्र का लग्न भाव में शनि से पीड़ित होना। शनि का द्वितीयेश होकर अपने से बारहवें होना और विवाह भाव को सप्तम दृष्टि देने के फलस्वरुप इस जातिका का वैवाहिक जीवन अधिक नहीं चला। सप्तम भाव, सप्तमेश बुध, शुक्र सभी पाप प्रभाव में होने के वजह से कमजोर और पीडित है। मात्र 30 वर्ष की आयु में एक दुर्घटना में इनके पति की मृत्यु हो गई।  

30 नवम्बर 1959, 02:25, दिल्ली :- कन्या लग्न और वृश्चिक राशि की कुंडली में सप्तम भाव राहु/केतु अक्ष में हैं। विवाह कारक शुक्र नीचस्थवस्था में राहु के साथ युति में है। शुक्र द्वितीयेश भी है (जीवन साथी की आयु का भाव) और कमजोर है। सप्तमेश गुरु मंगल, सूर्य, चंद्र और बुध के साथ युति संबंध में होने के कारण वैवाहिक जीवन का सुख देने में असमर्थ है। सप्तमेश गुरु पर अष्ट्मेश और द्वादशेश दोनों का प्रभाव है। यह योग वैवाहिक जीवन को कष्टमय और वैवाहिक जीवन के अवधि को सीमित कर रहा है। इस कुंड्ली में द्वीतीयेश शुक्र अत्यंत पीडित हैं। 37 साल की आयु में इनके पति नहीं रहें।

28 अप्रैल 1960, 06:00, दिल्ली :- यह एक महिला जातिका की कुंड्ली है। यह कुंड्ली मेष लग्न और धनु राशि की है। विवाह भाव को उच्चस्थ सूर्य की दृष्टि प्राप्त हो रही है। द्वीतिय भाव में सप्तमेश शुक्र विराजित है, जिन्हें द्वादशेश वक्री गुरु और राहु की नवम दृष्टि प्राप्त हो रही है। दूसरा भाव जीवन साथी का भाव है और इस भाव पर एक से अधिक पाप ग्रहों का प्रभाव आ रहा है। अत: जातिका के पति की आयु कम रही । जिसके चलते  २९ वर्ष की आयु में इनके पति की मृत्यु हो गई। 

22 सितम्बर 1959, 03:20, दिल्ली :- सप्तमेश शनि पाप ग्रहों की दृष्टि आने के कारण अशुभ प्रभाव में है। शुक्र वक्री अवस्था में है और द्वितीय भाव में है। गुरु पर केतु की दृष्टि है। एवं द्वितीयेश सूर्य तीसरे भाव में बुध, मंगल और राहु की युति में है, केतु की सप्तम दृष्टि द्वितीयेश सूर्य को प्राप्त हो रही है। सप्तमेश एवं अष्टमेश शनि की दशम दृष्टि भी द्वितीयेश सूर्य को प्राप्त हो रही है। राहु में केतु की दशा में इनके पति नहीं रहे, और ये विधवा हो गई। 

5 फरवरी 1964, 23:50, दिल्ली :- तुला लग्न और तुला राशि की कुंडली में सप्तमेश मंगल उच्चस्थ अवस्था में चतुर्थ भाव में सूर्य के साथ है। विवाह भाव और द्वितीय भाव को शनि की दृष्टि मिल रही है। जिसके फलस्वरुप ये दोनों भाव पीडित हो रहे है। विवाह कारक शुक्र रोग भाव में रोगेश गुरु के साथ स्थित है, शुक्र की यह स्थिति वैवाहिक जीवन के लिए सुखद नहीं है। जीवन साथी की आयु के लिए दूसरे भाव और भावेश का विचार किया जाता है, इस कुंडली में द्वितीयेश मंगल सुस्थित नहीं है। द्वादशेश बुध भी राहु/केतु पाप प्रभाव में है। बुध महादशा के आरम्भ में जातिका ने अपने पति को खो दिया और विधवा योग के फल प्राप्त हुए।

1 नवम्बर 1951, 12:35, दिल्ली :- यह कुंडली मकर लग्न और वॄश्चिक राशि की है। सप्तमेश चंद्र पर मंगल और शनि की दृष्टि है। सप्तम भाव पर वक्री गुरु पंचम दृष्टि दे रहे है। शुक्र और गुरु दोनों पर शनि एवं मंगल का अशुभ प्रभाव है। द्वादशेश गुरु का सप्तम भाव को देखना, वैवाहिक सुख में कमी कर रहा है। जीवन साथी की आयु के भाव द्वितीय भाव पर राहु का अधिकार है और केतु की सप्तम दृष्टि है। मंगल भी दूसरे भाव को प्रभावित कर जीवन साथी की आयु में कमी के योग बना रहा है। केतु में शुक्र की दशा में ये विधवा हुई।