24, Aug 2022

मांगलिक दोष विचार व परिहार

मंगली दोष का विचार कुडली मिलान के अंतर्गत किया जाता है l मंगल दोष को कुज दोष, भौम दोष, मांगलिक दोष आदि नामों से भी जाना जाता है l दक्षिणी भारत में इसे कलत्र दोष के नाम से जाना जाता है l यदि किसी जातक की कुंडली मंगली दोष से प्रभाबित है तो उसे मांगलिक कहा जाता है l वर वधु की कुंडली मिलान के समय मांगलिक विचार किया जाता है l वर बधू की कुंडली में यदि 1 ,4, 7, 8  व 12वें भाब में मंगल स्थित हो तो मंगली दोष होता है l  इस स्थिति में दाम्पत्य जीवन में बाधाएं आ सकती है, यह समस्या तभी होगी जब मंगल किसी भी शुभ ग्रह के प्रभाब में नहीं होगा l यदि शुभ ग्रह का प्रभाव बुध , गुरु , शुक्र की युति या दृष्टि  हो तो दाम्पत्य जीवन घातक नहीं होगा l परन्तु दक्षिण भारत में द्वितीय भावगत मंगल को भी मांगलिक माना जाता है  l  इस कारण वैवाहिक जीवन के लिए कुंडली के प्रथम , द्वितीय , चतुर्थ , सप्तम , अष्टम व द्वादश भावों का महत्वपूर्ण स्थान होता है , क्योंकि प्रथम भाव से स्वस्थ्य , द्वितीय भाव से धन , कुटुंब, वाणी व मारक क्षमता को दर्शाता है l चतुर्थ भाव सुख व भौतिक सुख सुविधों व सप्तम भाव काम व दाम्पत्य जीवन को भी दर्शाता है l  इस प्रकार अष्टम भाव बधू के लिये सौभाग्य या पति व स्वयं की आयु का भाव है l इस प्रकार द्वादश भाव ‌‌‍शैय्या सुख का कारक है l

मंगल दोष के परिहार

फलित ज्योतिष ग्रन्थों में दिए गये मंगल दोष परिहार मंगल दोष निरस्त हो जाता हैl  साथ ही  कुछ विशेष परिस्थितियों में मंगल दोष स्वत न्यून हो जाता है , यदि मंगल दोषक्त  भाव के स्वामी  की स्थिति जन्म कुंडली में केंद्र और त्रिकोण भावो में तो भी मंगल दोष अविचारणीय अथवा निरस्त  हो जाता हैl अर्थात ऐसी में कुंडली मंगली दोष पूर्णतय निरस्त होगा, विभिन्न राशियों में मंगलदोष की स्थिति दोष को निरस्त करने वाली होती है, हमारे कुछ ज्योतिर्विदों की मान्यता है की कुछ परिस्थितियों में मंगल की स्थिति से मंगलदोष समाप्त हो जाता है l  यदि मंगल चर राशिओं मेष, कर्क, तुला व मकर  में हो तो मंगल दोष नहीं होता है l यदि जातक की जन्म कुण्डली में मंगल स्वराशि मेष व वृश्चिक  या उच्च राशि मकर में स्थित हो अथवा नवांश में स्वराशि या उच्च राशिगत हो तो मंगलदोष समाप्त हो जाता है l हमारे शास्त्रों के अनुसार  यदि मंगलदोषक्त भावों में मित्र ग्रह सूर्य, चंद्र व गुरु की राशियों में स्थित हो , तो भी मंगलदोष नहीं होता है l यदि मंगल कर्क राशि में नीच राशिगत या सूर्य राशि सिंह में हो तो भी मंगल दोष निरस्त हो जाता है l अस्त , वक्री या बुध की राशिओं  मिथुन , कन्या  में स्थित होने से मंगल दोषोक्त भावों में स्थित मंगल , मंगलदोष समाप्त हो जाता है l बली मंगल ही दोषपूर्ण होता है , निर्बल मंगल दोष रहित होता है  l केन्द्र भावों में चन्द्रमा हो तो भी मंगलदोष निरस्त हो जाता है l

दोषकारी कुजो यस्य बलीचे दुक्त दोष कृतl
दुर्बल: शुभ दृष्टोवा सुर्येणस्मग्तोपिवा ll

अर्थात जन्म कुंडली में मंगल अनिष्ट स्थानों में बलबान होकर पड़ा होगा तभी वह दोषकारी होगा अन्यथा दुर्बल होने, शुभ ग्रह से दृष्ट होने या सूर्य के साथ अस्त या वक्री होने पर दोषकारी नहीं होगा , उत्तर भारतीय परम्परा के अनुसार प्रथम भाव विराजित मंगल होने पर मंगल दोष होता है लेकिन दक्षिण भारत की परम्परा के अनुसार द्वितीय भाव में मंगल की स्थिति भी मांगलिक दोष का कारण माना जाता है I

परन्तु आधुनिक ज्योतिषी लग्न व द्वितीय भाव में स्थित मंगल को मंगली मानते है I  आधुनिक विद्वानों का मतानुसार पुरुष व स्त्री दोनों की कुण्डली में भिन्न भिन्न भावों में  मंगलदोष माना है , स्त्री की कुण्डली में प्रथम, द्वितीय, चतुर्थ,पंचम, सप्तम, अष्टम व द्वादश भाव में मंगल की स्थिति मंगलदोष निर्मित होता हैI  स्त्री के लिए अष्टम भाव का महत्व 7वें भाव से कम नहीं है , क्योंकि अष्टम भाव से स्त्री के मांगल्य का विचार किया जाता हैI अत: पति सुख के लिये कन्या की जन्म कुण्डली में अष्टम भाव का महत्व सप्तम भाव से अधिक होता है, पुरुष की कुण्डली में सप्तम भाव व स्त्री की कुण्डली में सप्तम व अष्टम भाव मंगल द्वारा प्रभावित होते हैI

इस प्रकार 12 लंग्नो (मेष से मीन) तक केवल 72 स्थितियों में मंगल की स्थिति मंगलदोष का निर्माण करती है, (यदि द्वितीय भाव में स्थित मंगल को भी लिया जाये ) कुंडली में 60 स्थितियों में मंगलदोष निरस्स्त हो जाता हैI अत: मात्र 12 स्थितियों में ही मंगलदोष प्रभावी रहता हैI

मंगल दोष के सैधान्तिक पक्ष के साथ साथ व्यावहारिक व पारंम्परिक पक्ष का भी अध्ययन करना अति आवश्यक हैI व्यवहार में मंगल दोष के साथ अनेक मान्यताएं, अवधारणाऐ , नियम व शोध हो चुकें हैं, तो इस वारे में हमारे विद्वानों के मतानुसार मंगल दोष के निर्धारण के लिए लग्न कुंडली के साथ चन्द्र एवम शुक्र कुंडली से मंगली दोष का निर्धारण किया जाता हैI इसमें चन्द्रमा व शुक्र जिस भाव में स्थित हो उस भाव को लग्न मानकर चन्द्र व शुक्र कुंडली का निर्माण किया जाता हैI हमारे कुछ विद्वानों की मान्यता है की मंगल दोष सप्तमेश से भी देखा जाना चाहिए अर्थात सप्तमेश कुण्डली में जिस भाव में स्थित हो उससे 1,4,7,8 व 12 वें भाव में मंगल हो तो मंगल दोष होता है, परन्तु वर्तमान में यह मान्यता स्वीकार नहीं है l 

जादातर देखा गया है की यहाँ हर दुसरे या तिसरे जातक को कहा जाता है की आप की कुंडली में मंगल दोष हैl जब की हमारे अनुभव के अनुसार पाया गया है की लगभग लाख मे से दस जातक हे पूर्ण मांगलिक दोष से प्रभावित होते हैI