06, Sep 2022

पितृ शांति पर्व - 10 सितंबर - 25 सितंबर 2022

पितृ क्या है?

पितृ का अर्थ है पिता, किन्तु पितृ शब्द कई अर्थों में प्रयुक्त हुआ है: - प्रथम व्यक्ति के आगे के तीन मृत पूर्वज या मानव जाति के प्रारम्भ या प्राचीन पूर्वज जो एक पृथक् लोक के अधिवासी के रूप में कल्पित हैं। दूसरे अर्थ के लिए ऋग्वेद में उल्लेख है कि: पितृगण निम्न, मध्यम एवं उच्च तीन श्रेणियों में व्यक्त हुए हैं। वे प्राचीन एवं पाश्चात्यकालीन कहे गये हैं। वे सभी अग्नि को ज्ञात हैं, यद्यपि सभी पितृगण अपने वंशजों को ज्ञात नहीं होते हैं। पितृ अधिकतर देवों, विशेषतः यम के साथ आनन्द मनाते हुए व्यक्त किये गये हैं। वे सोमप्रेमी होते हैं, वे कुश पर बैठते हैं, वे अग्नि एवं इन्द्र के साथ आहुतियाँ लेने आते हैं और अग्नि उनके पास आहुतियाँ ले जाती हैं। जल जाने के उपरान्त मृतात्मा को अग्नि पितरों के पास ले जाती है।

पितृ शांति पर्व 
भाद्रपद मास की पूर्णिमा से पितृ शांति पर्व का प्रारम्भ होता है। यह मुख्यत: 16 दिन की अवधि होती है, जिसमें हिंदू अपने पूर्वजों को भोजन, प्रसाद के रुप में श्रद्धांजली देकर प्रसन्न करते हैं। पूर्णिमा तिथि से शुरु होकर यह पर्व अमावस्या तिथि पर समाप्त होता है। वर्ष 2022 में यह पर्व 10 सितंबर, शनिवार, भाद्रपद, शुक्ल पक्ष पूर्णिमा से शुरु हो रहा है। पितृ पक्ष का अंतिम दिन सर्वप्रीति अमावस्या या महालया अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है। पितृ पक्ष पर्व का सबसे महत्वपूर्ण दिन महालया अमावस्या का दिन होता है। इसके अतिरिक्त पितृ पक्ष को श्राद्ध या कनागत भी कहा जाता है। पितृ पक्ष पर्व हमारे पूर्वजों को याद, धन्यवाद और सम्मान करने का समय है। ऐसा माना जाता है कि श्राद्ध के समय, पूर्वज अपने परिजनों को आशीर्वाद देने के लिए धरती पर आते हैं। इस साल में श्राद्ध की तिथियां निम्न रहेंगी-   2022 पितृ शांति पर्व

10.09.2022  शनिवार पूर्णिमा श्राद्ध 

10.09.2022  शनिवार प्रतिपदा श्राद्ध अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा

11.09.2022  रविवार द्वितीया श्राद्ध अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा

12.09.2022 सोमवार तृतीया श्राद्ध अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा

13.09.2022  मंगलवार चतुर्थी श्राद्ध अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा

14.09.2022  बुधवार पंचमी श्राद्ध अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा

15.09.2022  गुरूवार षष्ठी श्राद्ध अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा

16.09.2022  शुक्रवार  सप्तमी श्राद्ध अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा

18.09.2022  रविवार अष्टमी श्राद्ध अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा

19.09.2022  सोमवार नवमी श्राद्ध अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा - सौभाग्यवतियों का श्राद्ध

20.09.2022  मंगलवार दशमी श्राद्ध अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा

21.09.2022  बुधवार एकादशी श्राद्ध, अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा - सन्यासियों का श्राद्ध

22.09.2022 गुरूवार   द्वादशी श्राद्ध या माघ श्राद्ध अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा

23.09.2022  शुक्रवार त्रयोदशी श्राद्ध, अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा

24.09.2022  चतुर्दशी श्राद्ध अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा - चतुर्दशी का श्राद्ध – चतुर्दशी तिथि के दिन शस्त्र, विष, दुर्घटना से मृतों का श्राद्ध होता है चाहे उनकी मृत्यु किसी अन्य तिथि में हुई हो। यदि चतुर्दशी तिथि में सामान्य मृत्यु हुई हो तो उनका श्राद्ध अमावस्या तिथि में करने का विधान है।

25.09.2022 शनिवार सर्व पितृ अमावस्या अश्विन, कृष्ण प्रतिपदा - अमावस्या श्राद्ध, अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध, सर्वपितृ श्राद्ध

पितृ दोष की उत्पत्ति का कारण
हमारे पूर्वज, पितृ जो कि अनेक प्रकार की कष्टकारक योनियों में अतृप्ति, अशांति, असंतुष्टि का अनुभव करते हैं एवं उनकी सद्गति या मोक्ष किसी कारणवश नहीं हो पाता। ऐसे में वे आशा करते हैं कि हम उनकी सद्गति या मोक्ष का कोई साधन या उपाय करें, जिससे उनका अगला जन्म हो सके एवं उनकी सद्गति या मोक्ष हो सके। उनकी भटकती हुई आत्मा को संतानों से अनेक आशाएं होती हैं एवं यदि उनकी उन आशाओं को पूर्ण किया जाए तो वे आशीर्वाद देते हैं। यदि पितृ असंतुष्ट रहें तो संतान की कुंडली दूषित हो जाती है जिसके कारण अनेक प्रकार के कष्ट एवं परेशानियां उत्पन्न हो जाती हैं, फलस्वरूप कष्टों तथा दुर्भाग्य का सामना करना पड़ता है। हमारे जीवन में कई समस्याएं मूलभूत आध्यात्मिक कारणों से होती हैं। उन कारणों में से एक है, मृत पूर्वजों की अतृप्ति। वंशजों को होने वाला कष्ट, जिसे पितृ दोष कहते हैं पूर्वजों के कारण वंशजों को किसी प्रकार का कष्ट ही पितृ दोष है।

पितृ दोष से होने वाली हानियां
यदि किसी जातक की कुंडली मे पितृ दोष होता है तो उसे अनेक प्रकार की परेशानियां व हानियां उठानी पड़ती हैं। जो लोग अपने पितरों के लिए तर्पण एवं श्राद्ध नहीं करते, उनके राक्षस, भूत-प्रेत, पिशाच, डाकिनी-शाकिनी, ब्रह्मराक्षस आदि विभिन्न प्रकार के भयों से पीड़ित रहने की संभावनाएं बनती हैं।

  1. घर में कलह, अशांति रहती है।
  2. रोग-पीड़ा पीछा नहीं छोड़ती है।
  3. घर में आपसी मतभेद बने रहते हैं।
  4. कार्यों में अनेक प्रकार की बाधाएं उत्पन्न हो जाती हैं।
  5. अकाल मृत्यु का भय बना रहता है।
  6. संकट, अनहोनी व अमंगल की आशंका बनी रहती हैं।
  7. संतान की प्राप्ति में विलंब होता है।
  8. घर में धन का अभाव भी रहता है।
  9. अनेक प्रकार के महादुःखों का सामना करना पड़ता है।

पितृ दोष के लक्षण

  1. घर में आय की अपेक्षा खर्च बहुत अधिक होता है।
  2. घर में लोगों के विचार नहीं मिल पाते जिसके कारण घर में झगड़े होते रहते हैं।
  3. अच्छी आय होने पर भी घर में बरकत नहीं होती जिसके कारण धन एकत्रित नहीं हो पाता।
  4. संतान के विवाह में काफी परेशानियां और विलंब होता है।
  5. शुभ तथा मांगलीक कार्यों में काफी दिक्कतें उठानी पड़ती हैं।
  6. अथक परिश्रम के बाद भी थोड़ा-बहुत फल मिलता है।
  7. बने-बनाए काम को बिगड़ते देर नहीं लगती।

श्राद्ध के देवता
वसु, रुद्र और आदित्य श्राद्ध के देवता माने जाते हैं। इन देवताओं की उपासना, आराधना और विशेष पूजा, श्राद्ध से देवता प्रसन्न होकर जातक को पितृ ऋण से मुक्त करते हैं।

पितृ दोष से मुक्ति का मार्ग श्राद्ध
हर व्यक्ति के तीन पूर्वज पिता, दादा और परदादा क्रम से वसु, रुद्र और आदित्य के समान माने जाते हैं। श्राद्ध के वक्त वे ही अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि वे श्राद्ध कराने वालों के शरीर में प्रवेश करके और ठीक ढंग से रीति-रिवाजों के अनुसार कराये गये श्राद्ध-कर्म से तृप्त होकर वे अपने वंशधर को सपरिवार सुख-समृद्धि और स्वास्थ्य का आशीर्वाद देते हैं। श्राद्ध-कर्म में  उच्चारित मंत्रों और आहुतियों को वे अन्य सभी पितरों तक ले जाते हैं।