27, Sep 2022

मां ब्रह्मचारिणी - द्वितीय नवरात्र व्रत पर्व 2022

हिंदू धर्म में नवरात्रि पर्व का विशेष महत्व है। नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है और आज नवरात्रि के दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाएगी। 27 सितम्बर,  मंगलवार के दिन मां की व्रत कथा करने और पूजा-अर्चना करने से भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। मान्यता है कि मां ब्रह्मचारिणी की आराधना से तप, शक्ति ,त्याग ,सदाचार, संयम और वैराग्य में वृद्धि होती है और शत्रुओं को पराजित कर उन पर विजय प्रदान करती हैं। मां ब्रह्मचारिणी का स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में तप की माला और बांए हाथ में कमण्डल है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा से जीवन में तप त्याग,वैराग्य,सदाचार और संयम प्राप्त होता है।साथ ही, आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है। मां ब्रह्मचारिणी की कृपा से व्यक्ति संकटों से घबरता नहीं है, बल्कि उनका डटकर सामना करता है।

ऐसा है मां ब्रहृमचारिणी का स्वरूप
जैसा कि नाम से स्पष्ट है मां ब्रहृमचारिणी। यानि जो तप और आचरण की देवी हैं। मां एक हाथ में जप की माला व दूसरे में कमण्डल धारण किए हैं। अगर आप अपने जीवन में सफलता पाना चाहते हैं तो मां के इस रूप की उपासना आपको जरूर करनी चाहिए। ऐसी मान्यता है कि मां के इस रूप की पूजा करने से व्य​क्ति में संयम, त्याग और वैराग्य के साथ—साथ सदाचार के भाव भी विकसित होते हैं।

माता ब्रह्मचारिणी देवी का वह स्वरूप है जिसमें माता तपस्वी रूप में अपने तेज से संसार में तप और ज्ञान का संचार कर रही हैं। माता ब्रह्मचारिणी तप में लीन रहती है इसलिए इनकी वेशभूषा भी तपस्वियों जैसी है।देवी भागवत पुराण में देवी का जैसा स्वरूप बताया गया है उसके अनुसार मां ब्रह्मचारिणी के दाहिने हाथ में अक्षमाला और बाएं हाथ में कमंडलु है।

माता अपने तन पर पीत वस्त्र धारण करती हैं और उनके मुखड़े पर असीम शांति और होठों पर दिव्य मुस्कान है। माता गंभीर मुद्रा में रहती हैं और भक्तों पर कृपा बरसाती हैं।पुराण में बताया गया है कि मां दुर्गा ने पार्वती के रूप में पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री बनकर जन्म लिया। महर्षि नारद के कहने पर अपने जीवन में भगवान महादेव को पति के रूप में पाने के लिए उन्होंने कठोर तपस्या शुरू कर दी। कठिन तपस्या में लीन रहने के कारण देवी पार्वती के उनके तपस्वी रूप को ब्रह्मचारिणी कहा गया।

नवरात्रि के दूसरे दिन भक्तों के मन में तप और साधना की ज्योत जलाने के लिए देवी के दूसरे स्वरूप माता ब्रह्मचारिणी की पूजा की जाती है। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते समय भक्तों को इस मंत्र से उनका ध्यान पूजन करना चाहिए।

दधाना करपद्माभ्याम्, अक्षमालाकमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि, ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।

अर्थात जिनके एक हाथ में अक्षमाला है और दूसरे हाथ में कमंडल है, ऐसी उत्तम ब्रह्मचारिणीरूपा मां दुर्गा मुझ पर कृपा करें। शांत चित्त रहने वाली और तुरंत वरदान देने वाली हैं ब्रह्मचारिणी

माता ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं। इसलिए इस रूप में इन्हें देवी सरस्वती रूप में भी जाना जाता है। इनका स्वरूप श्वेत और पीत वस्त्र में लिपटी हुई कन्या के रूप में दिखाया गया है। इनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे हाथ में कमंडल है।

यह अक्षमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त है। अपने भक्तों को यह ज्ञान और विवेक प्रदान करके जगत में प्रतिष्ठित और विजयी बनाती हैं। माता ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है। अन्य देवियों की तुलना में वह अति सौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली है।

मां ब्रह्मचारिणी की कथा पूर्वजन्म में मां ब्रह्मचारिणी पर्वतराज हिमालय की पुत्री हैं। भगवान शंकर को पति रूप में पाने के लिए मां ब्रह्मचारिणी कठोर तपस्या करती हैं। इसीलिए इन्हें ब्रह्मचारिणी कहा जाता है। शास्त्रों के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी ने एक हजार वर्ष तक फल-फूल खाएं और सौ वर्षों तक केवल जमीन पर रहकर शाक पर निर्वाह किया। इतना ही नहीं, इसके बाद मां ने कठिन उपवास रखे और खुले आकाश के नीचे धूप और बारिश को सहन किया। टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और लगातार भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। जब उनकी कठिन तपस्या से भी भोले नाथ प्रसन्न नहीं हुए, तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी छोड़ दिए। वे कई हजार सालों तक निर्जल और निराहार रह कर तपस्या करती रहीं। जब मां ने पत्ते खाने भी छोड़ दिए तो इनका नाम अपर्णा पड़ गया। मां ब्रह्मचारिणी कठिन तपस्या के कारण बहुत कमजोर हो गईं। मां की इतनी कठिन तपस्या देखते हुए सभी देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी ने सरहाना की और मनोकामना पूर्ण होने का आशीर्वाद दिया।

ब्रह्मचारिणी माता की पूजा और लाभ
माता ब्रह्मचारिणी की पूजा में लाल और पीले फूलों का प्रयोग करना चाहिए। माता को भोग में ऋतु फल, मखाना, और शक्कर का भोग लगाना चाहिए। इनकी पूजा से कुंडली में गुरु ग्रह और चंद्रमा के प्रतिकूल होने पर जो विपरीत प्रभाव प्राप्त होते हैं उनसे राहत मिलती है। इनकी भक्ति करने वाला साधक संसार में ज्ञान विज्ञान को प्राप्त करता है।

पूजा विधि
पूजा की शुरूआत हाथोंं में फूल लेकर मां के ध्यान से करें। फिर देवी को पंचामृत स्नान कराकर तरह के फूल, अक्षत, कुमकुम, सिन्दुर लगाएं। चूंकि मां को सुगंधिव व श्वेत फूल पसंद हैं अत: इस तरह के फूलों से मां का श्रृगांर करें। अगर कमल का फूल मिल जाए तो अति उत्तम होगा।

मां ब्रह्मचारिणी को है पिस्ता पसंद
ऐसा माना जाता है कि मां को पिस्ते की मिठाई बेहद पसंद है। इसलिए जहां तक संभव हो उन्हें इसी का भोग लगाएं। गुड़हल और कमल का फूल बेहद पसंद है। पूजा करने समय इन फूलों से बनी माला मां को अर्पित करें। चूंकि मां को शकर, मिश्री भी पसंद है। अत: इसका भी भोग लगाएं। इससे मां जल्दी प्रसन्न होती हैं।

मां ब्रह्मचारिणी की पूजा के मंत्र
या देवी सर्वभूतेषु माँ ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:।।
दधाना कर पद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मई ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।। ॐ देवी ब्रह्मचारिण्यै नमः॥

मां ब्रह्मचारिणी की आरती
जय अंबे ब्रह्माचारिणी माता। जय चतुरानन प्रिय सुख दाता।
ब्रह्मा जी के मन भाती हो। ज्ञान सभी को सिखलाती हो।
ब्रह्मा मंत्र है जाप तुम्हारा। जिसको जपे सकल संसारा। 
जय गायत्री वेद की माता। जो मन निस दिन तुम्हें ध्याता।
कमी कोई रहने न पाए। कोई भी दुख सहने न पाए।
उसकी विरति रहे ठिकाने। जो तेरी महिमा को जाने।
रुद्राक्ष की माला ले कर। जपे जो मंत्र श्रद्धा दे कर।
आलस छोड़ करे गुणगाना। मां तुम
ब्रह्माचारिणी तेरो नाम। पूर्ण करो सब मेरे काम।
भक्त तेरे चरणों का पुजारी। रखना लाज मेरी महतारी।